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Saturday, August 23, 2014

८३म सगर राति दीप जरय नन्द विलास रायक संयोजकत्व मे भपटियाहीमे ३० अगस्त संध्या ६ बजे सँ ३१ अगस्त भोर ६ बजे धरि आयोजित अछि। ई आयोजन नारी केन्द्रित लघु आ विहनि कथापर आयोजित अछि। अहाँ सादर आमंत्रित छी।

८३म सगर राति दीप जरय नन्द विलास रायक संयोजकत्व मे भपटियाहीमे ३० अगस्त संध्या ६ बजे सँ ३१ अगस्त भोर ६ बजे धरि आयोजित अछि। ई आयोजन नारी केन्द्रित लघु आ विहनि कथापर आयोजित अछि। अहाँ सादर आमंत्रित छी।

विदेह भाषा सम्मान (समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान) २०१४ मूल पुरस्कार- श्री नन्द विलास राय (सखारी पेटारी- लघु कथा संग्रह) २०१४ बाल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (नै धारैए- बाल उपन्यास) २०१४ युवा पुरस्कार - श्री आशीष अनचिन्हार (अनचिन्हार आखर- गजल संग्रह) २०१५ अनुवाद पुरस्कार - श्री शम्भु कुमार सिंह ( पाखलो- तुकाराम रामा शेटक कोंकणी उपन्यासक मैथिली अनुवाद)

विदेह भाषा सम्मान
(समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान)
२०१४ मूल पुरस्कार- श्री नन्द विलास राय (सखारी पेटारी- लघु कथा संग्रह)
२०१४ बाल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (नै धारैए- बाल उपन्यास)
२०१४ युवा पुरस्कार - श्री आशीष अनचिन्हार (अनचिन्हार आखर- गजल संग्रह)
२०१५ अनुवाद पुरस्कार - श्री शम्भु कुमार सिंह ( पाखलो-  तुकाराम रामा शेटक कोंकणी उपन्यासक मैथिली अनुवाद)

बेटी (क. ललन कुमार कामत)

बेटी


सोमनाथजी म्युनसीपल आँफि‍समे पैंतीस बरख नोकरी केला पछाति रिटायर भेला। जीवनमे एक्को पाइ नजायज नै ग्रहन केलनि। सोनमनाथजी हृदैसँ पवित्र, शालि‍न, विनम्र आ दयाक भाव हिनका मुख-मण्डलसँ हरि‍दम झलकैत रहैए तँए हिनकर बिशेषता बेक्तीगत संज्ञा (उपनाम) मे बदलि‍ गेलनि आ घरसँ लऽ कऽ आँफिस धरि‍ लोक सभ हिनका सोनाजी कहि बोलबए लगलनि।
सोनाजीकेँ तीनटा सन्‍तान, बड़ दुइटा लड़का, जेठ बबलू तैपर सँ डबलू आ सभसँ छोटकी बेटी उषा छन्‍हि‍। उषाक बि‍आह नीक घरमे, इंजीनि‍यर बड़सँ कऽ सम्पन्न केलखिन। जमाइबाबू मुजफरपुरमे नोकरी करै छथिन ओतै सरकारी अवास भेटल छन्‍हि‍, तइमे उषा सङ्गे रहै छथिन।
जेठका बेटा बबलूक किरदानीसँ दुनू परानी सोनाजीक मन बेथित छन्‍हि‍। बबलू इंजीनि‍यरिंग करैले दिल्ली गेला मुदा हरियानाक एकटा लड़िकीक प्रेममे फँसि अपन जीवनक नैयाकेँ किनार कऽ लेलनि आ ओतै प्रेम-बि‍आह करि बसि गेला।
डबलू नागपुरमे बैंक मनेजर छथिन। हिनकरो बि‍आह भेला पछाति पत्नी सङ्गे आतै रहै छनि‍न। सालमे एक-आध बेर कभी-कभार घर अबै छथिन।
सोनाजी अपन जीवनसंगि‍नी ममताक सङ्ग बुढ़ाड़ीक पहिया जेना-तेना खिंचै छथि‍। बेटा-पुतोहुक सुख हिनका नसीब नै होइ छन्‍हि‍ मुदा उषा, बेटी रहैतो, बेटा जकाँ देखभाल करैए। सप्ताहमे एकबेर आबि कऽ जरूरे देखि‍ जाइत अछि। उषाक सोभाव पिताजीसँ बिरासतमे प्राप्त भेल छन्‍हि‍ तँए मधुरो आ एक दोसरसँ अनुकूलो छन्‍हि‍।
सोनाजीक ई पैंसैठम बरख चलि रहल छन्‍हि‍। नोकरीसँ रि‍टायर भेल रहथि‍ तँ शरीरसँ स्वस्थ छला आ भरोसा छेलनि जे आगुओ नीके रहता, मुदा मनुख तँ मात्र इच्छा करैए, होइ तँ अछि वएह जे ऊपरबलाक मरजी रहै छन्हि। उषाक बि‍आहक पछाति दुनू बेटा दू जगह अपन-अपन घर बसा लेलकनि। सोनाजी दुनू परानीकेँ चिन्ता-फिकि‍र घरेड़ देलकनि। जीवन-शक्ति शि‍थि‍ल भऽ गेलनि। हाथ-पएर धीमा पड़ि‍ गेलनि। आँखिक रोशनी कमि गेलनि। कानोसँ कम सुनाइ दिअ लगलनि‍। पाचनतंत्र गड़बड़ा गेलनि आ दिल-दिमाग सेहो दुरूस नै रहलनि। मतलब बुढ़ापा हिनकर समस्या बनि गेलनि।
बेटा सभ कभी-कभार फोन घुमा हालचाल करैत रहै छन्‍हि‍। दोस्त-यारकेँ- दबाइ दोकनदार आ मोहल्लाक डाक्टर- सभकेँ फोन घुमा कहैत रहैए जे माए-बाबूकेँ देखैत रहबै।
सोनाजी दुनू गोटेकेँ ई परिपक्व अवस्था अछि जइमे ज्ञान, स्थिरता आ अनुभव छन्‍हि‍ आ तहिक सहारे दुनू बेकती जीवन रूपी नैयाकेँ आगू खिंच रहल छथि‍। ओना तँ बुढ़ापा भार नै होइत अछि मुदा जब खाएल-पीअल काया जड़जड़ भऽ जाइए आ परि‍वारक सदस्‍यक संग तालमेल नै रहैए तँ परीवारमे अपन उपयोगितापर विराम लगि जाइत अछि। वृद्ध लोकनिकेँ ऐ अवस्थामे सहायता आ सहयोगक जरूरत पड़ि‍तै छै। जे बेटा-पुतोहु अपन वृद्ध माए-बापकेँ सेवा करैए वएह जीवनक उत्तम कर्म करैए। एहेन पूत जे माए-बापकेँ जीबि‍ते छोड़ि दइए आ अपनेमे मगन रहैए ओ ओहने काज करैए जेना धिया-पुता सभ बालुक रेतसँ महल बना लइए आ तैपर गाछक डारि-पात गाड़ि‍ कऽ बगीचा बना लइए आ खुशी मनबैत रहैए मुदा जेकरा ज्ञान अछि ओ अपन जीवनक उत्तम कर्म करैसँ पाछू नै हटैए।
आजुक समाजमे बेकती अपन बाल-बच्चा संग परि‍वारमे रीझल रहैए। माए-बाप, बूढ़-पुरानक मान-मर्यादा, तेकर सेवा सत्कारकेँ साफे बिसरि जाइए। ओहेन मनुख हरिदम पाबैक पाछू बेहाल रहैए मुदा जे हिनका लग प्राप्त वस्तु अछि ओकर उपयोग करनाइ नै जानैए। बूढ़-पुरान अनुभवी होइ छथि‍ तँए हिनका समाजमे विशिष्ट स्थान भेटबाक चाही। जे बेकती वृद्धक सेवा नै करैए, ओ कायर होइए आ कायर लोग काल्पनिक विचारक धनवान आ महा गप्पी होइत अछि। जाबे धरि वृद्धजनक आ जुबकक समाजमे तालमेल आ समानता नै बैसत ताबे धरि‍ समाजिक आ सांस्कृतिक काजमे स्थइरूपसँ बिकास सम्‍भव नै भऽ सकत।
सोनाजी शरीरसँ कमजोर होइत गेला आ बेटा पुतोहुक सहायता आ सहानुभूति घटैत गेलनि‍। आब हिनका याद आबै छन्‍हि‍ ओ दिन, जइ दि‍न बेदरूकिया सभकेँ ठेहुनापर लऽ घौआ-छु मल्ले-छु करैत पढ़ैत रहथि‍ लब घर उठे आ पुरान घर खसे...। खैर जे ऐ हाथसँ करैए ओकरा ओइ हाथसँ भोगए पड़ैए। अहु अवस्थामे सोनाजीकेँ रोज-मर्ड़ाक समान कीनए बास्ते हाट-बजार जाइए पड़ै छन्‍हि‍।
आइ सोनाजी सुति ऊठि कऽ शौचालय गेलखिन। होनीकेँ किछु भेनाइ रहनि‍, बाहर निकलि‍तै चक्कर आबि गेलनि‍ आ शौचालयक दरबाजासँ टकरा कऽ खसि‍ पड़ला। ममताकेँ गिरैक अभास भेलनि, भिरकाएल फाटककेँ ठेल देखलखि‍न सोनाजी ढनमनाएल असहाय अवस्थामे ओङ्गराएल आ कहरि रहल छथि। ममता धबरा गेली आ उठबैक परि‍यास केलखिन, हिला-डोला कऽ पुछै छथिन-
बबलूक पपा! की भेल! केना खसलिऐ! बाजू ने?”
मुदा कोनो जवाब नै भेटलनि। सोनाजीकेँ मुहसँ छर-छर लेहू बहै छेलनि। ई देखि‍ ममता हाय-बाप करए लगली, असगरि‍ हिनकासँ उठि नै सकल, दौगल-दौगल दरबज्‍जापर जा हरेरामकेँ सोर पाड़लक, हरेराम दुनू परानी दौगल आएल, सोनाजीक ई दशा देखि‍ हाँइ-हाँइ कऽ उठा-पुठा कऽ ओसार परहक खाटपर सुतेलकनि। सोनाजीक ई हलात देखि‍ ममताक देह जेना केराक भालरि जकाँ काँपए लगलनि‍। की करब! आ केना हएत! किछु नै फुड़ै छेलनि‍। हरेराम हड़बराइत बाजल-
काकी! डागडरकेँ फोन करू!
मुदा फोनक डायरी सोनेजी रखने छेलखिन। ममताकेँ भेटि‍ते ने रहनि‍। हरेरामक पत्नी मंजू बुझि गेलखि‍न जे बेगरतापर एहेन छोटसन चीज नै भेटैत छन्‍हि‍, डाक्टरकेँ बजबैले दौगल-दौगल गेली।
मोहल्लेमे डाक्‍टर इकबालक घर छन्‍हि‍, एलखिन। सोनाजीक मुँहक ऊपरका दूटा दाँत नीचला ठोरमे भोंका गेल रहनि‍ तइसँ मुहसँ लेहूक टघार चलै छेलनि।़ उपचार शुरू भेल, कनीएकाल पछाति सोनाजीकेँ होश एलनि। ममतोकेँ जानमे जान एलनि। डाक्‍टर इकबाल ढाढ़स दैत कहलखि‍न-
“अखनि‍ कोनो चिन्ता करैक बात नै छै, सोनाजीक ब्लडपेसर आ सूगर बढ़ि‍ गेल छन्‍हि‍ तइसँ, चक्कर एलनि मुदा समैसँ जाँच आ इलाज हेबाक चाही नै तँ हार्टएटेकक सम्भावना बाढ़ि‍ सकैए।
डाक्‍टर इकबाल पूर्जी लीखि‍ हरेरामकेँ हाथमे दैत कहलखि‍न-
ई दबाइ जल्दीए लऽ कऽ आउ, सोनाजीकेँ ठोरमे टाँका लगबए पड़त।
तत्कालीन उपचार भेल। सोनाजीक मन पहि‍नेसँ नीक भेल। ममताक जीक मन हल्‍लुक हुअ लगल आ बेटा सभकेँ फोन लगबए लगली। जेठका बेटा बबलुकेँ पहिने फोन लगा घटनाक जानकारी देलखि‍न मुदा बबलू ऐ बातकेँ गंभीरतासँ नै लैत कहलकनि‍-
केना खसि गेलौ? बाबूजी दबाइ खाइत रहौ की नै? तों केतए रही? दिन राति टेन्‍शन दइमे तूँ सब लगल रहै छँह।
ऐ घड़ीमे बेटासँ एहेन तरहक जवाब सुनि ममताक मोह भंग भऽ गेलनि‍। फेर छोटका बेटा डबलूकेँ फोन लगा स्थितिक जानकारी देलखि‍न। डबलू पिताक हाल सूनि अस्वासन दैत बाजल-
“चिन्ता नै कर। डाक्टर साहेबसँ हम बात करै छी। दीपू दोस्तकेँ घरपर भेजै छियौ डाक्टरसँ देखा कऽ दबाइओ-दारू सभ लाबि देतौ। तूँ कान-खीज नै कर।
ममताकेँ बँचल-खोंचल आस नीरास भऽ गेलनि‍। खैर हिनका सभसँ ओते आसो नै लगेने छेलखि‍न। आब बेटी उषाकेँ फोन लगेलनि‍। आन दिन उषा माए-बाबूकेँ फोन करि‍ हालचाल जनैत रहए मुदा, आइ माइक फोन देखि‍ चौंकली आ उत्सुकता पूर्वक बाजलि‍-
हँ माय! हम सब नीके छी, मुदा बाबूजी केना छथिन?”  
ममता जनैत छेली जे साँच बात बतेलासँ उषा बेसी घबरा जाएत तँए बातकेँ छोट करैत बजली-
“बाबूजीक तबीयत गड़बड़ा गेलौ आबि कऽ देखि जाही।
मुदा भारी मन आ अवाजक थड़-थड़ाहटि‍सँ उषा भाँपि गेली जे साइत बाबूजीकेँ तबीयत बेसी खराब भऽ गेल अछि। घबराहटि‍ तँ भेबे केलनि मुदा संयमसँ फोन रखि सोचए लगली जे की करी! फेर उठि कऽ बैग झारि, कपड़ा-लत्ता चोपतए लगली आ तुरंत नैहर अबैक ओरयान करए लगली। उषाकेँ एक सालक बेटी छेलनि तेकरो मँुह-कान पोछि तैयार कऽ एक काँखमे बच्चा आ दोसर हाथमे बैग उठा ओसारपर रखि घर दरबज्जामे ताला लगबए लगली। घरक चाभी बिसवासी पड़ोसीकेँ दैत पति‍ इंजीनि‍यर साहेबकेँ फोन लगेलकनि जे घंटे भरि पहिले ड्यूटीपर नीकलले छेलखि‍न, इंजीनि‍यर साहैब फोन रीसीभ करैत बजला-
“हँ बाजू, की बात अछि?”
उषाक मन तँ हड़बड़ाएले रहनि‍ मुदा तैयो सम्हरि‍ कऽ बजली-
“हम बाबूजीकेँ देखैले गाम जा रहल छी, माइक फोन आएल जे बाबूजी सि‍रि‍यस छथिन। अहूँ साँझ धरि बाबूजीकेँ देखैले आबि जाएब।
ई बात सुनि इंजीनि‍यर साहैब चौंकि‍ गेला। पुछलखि‍न-
“अखनि! अचानक! किए गाम वि‍दा भेलौं?”
ताबे धरि उषा रिक्सापर बैसि बस स्टैण्ड दिस बिदा भऽ गेल छेली। हड़बड़ाइत बजली-
अखनि ओते गप हम नै करब, बूझि लियनु जे बाबूजीक हालत ठीक नै अछि।
उषाकेँ हड़बड़ाएल अवाजसँ इंजीनि‍यर साहैब बूझि गेला जे आब हिनका कोइ नै रोकि सकैए। भरोस दैत बजला-
जाएब तँ जाउ, मुदा मनके अस्थीर केने जाउ, आ बाजू जे पाइ-कौड़ी किछु संगमे अछि कि‍ने?”
उषा-
अहाँ पाइक चिन्ता नै करू, हमरा संगमे ओते पाइ अछि जइसँ, हम गाम जा सकै छी।
इंजीनि‍यर साहैब बात टोहियबैत पूछि देलकखि‍न-
पाइ केतएसँ लाबलौं अहाँ? बजैत रहै छिऐ जे हमरा हाथमे एकोटा छिद्दीओ ने रहैए।
उषा सकपका गेली। सकपकेबो केना ने करि‍तथि‍? पति‍क जेबीसँ बँचल-खूचल पाइ रोजे निकालि‍ते रहै छेली। तैपर सँ ऊपरौसँ किछु ने किछु मांगि‍ जरूरति‍क समान कीनैबि‍ते रहै छेली आ सभसँ जरूरी काज माए-बाबूकेँ देखै बास्ते जाए पड़ै तइमे खर्चा-बर्चा तँ होइते रहै। ई बात इंजीनि‍यरो साहैब जनि‍ते रहथि‍ तँए उषा बातकेँ खोलैत बजली-
अहाँक जेबी, जे रोज साफ होइत रहैए, वएह कोशलि‍या कऽ हम रखने रही, वि‍शेष पाइक ओरीयान अहाँ साँझ धरि केने आउ।
बेटा सभकेँ नै एलासँ ममता दुखी तँ छेली। मुदा ऊषाकेँ एलासँ निरासाक बादल छँटि‍ गेलनि‍। साँझ होइत-होइत उषाक पति इंजीनि‍यरो साहैब ऑफिससँ छुट्टी लऽ पहुँच गलखिन। वि‍हाने भने एम्बुलेन्ससँ सोनाजीकेँ दरभंगा लऽ गेलनि‍ आ डाक्‍टर यू.के बिश्वाससँ इलाज चलए लगलनि‍। तत्काल किछु दबाइ शुरू काएल गेल, ऑक्सिजनक खगता सेहो पड़लनि आ दिनमे तीन बेर एकर परयोग हुअ लगल। वि‍भिन्न तरहक जाँच कराैल गेल। जाँचक किछु रि‍पोट तीन दिनक पछाति आएल आ किछु रि‍पोट हप्ता भरिक बाद आएत। जे रि‍पोर्ट आएल ओइमे बी.पी हाइ, सूगर बढ़ल आ संगे-संग हार्ट अटेकक सम्‍भावना बताएल गेल।
सप्ताह भरि इलाज चलैत रहल, तबीयतमे उतार-चढ़ाव होइत रहल, कखनो नीक जकाँ गप-सप्‍प करैत रहथि‍ तँ कखनो आँखि पथरा जान्‍हि‍, दम फुलए लगनि‍ आ बेहोस भऽ जाथि‍। कखनो बेसुधि अवस्थामे अपने-आपसँ बड़बड़ए लगथि‍-
बबलू! कखनि‍ एलँह आ आ बैठ! कनि‍याँ! घर जा। अहाँ पोती छी हमर? आब! आब! बिस्कूट एकटा हमरो दिए ने! एे डबलू चाह लाबह! माएकेँ कहक चाह देत! ईह छिनरीक साँए! जेते खाएत नै तेते छिड़याएत!
दुनू पजरामे बैसि‍ उषा आ उषाक माए- ममता- बेना होंकि रहल छन्‍हि‍। सोनाजीक ई बड़बड़ेनाइ रोकैक बास्ते उषा सोनाजीकेँ छातीपर हाथ रखि हिला-डोला कऽ कहैए-
बाबूजी! बाबूजी! केकरासँ गप करै छि‍ऐ?”  
सोनाजी चौंकैत बजला-
“ऊँह! नै नै गप करै छी। तोहर माए केतए छौ?”
सोनाजी किछुकाल ऊपर एकटकी नजरिसँ तकैत रहला। फेरि जेना कोनो आहटि चौंकैए तहि‍ना चौंकैत बजला-
डबलू गाड़ीसँ उतरि गेल जा अगुआ कऽ लाबि लहक! काल्हिए कहै छी तोहर माए किछु बुझि‍ते नै छँह।
सोनाजीक स्‍मरण शक्‍ति‍ छीन्न भऽ गेल रहनि‍। आँखिक रोशनी चलि गेल रहनि‍। रहि-रहि कऽ बिछाैन होंथड़ए लगै छला। ई बेचैनीक अवस्था देखि उषा आ ममताकेँ जी-मन उड़ैत रहनि‍। मुदा उषा साहसी, कखनो अपन घबड़ाहटिकेँ दृष्टिगोचर नै हुअ दैत रहनि‍। मनकेँ थि‍र करैत उषा बाजलि‍-
“बाबूजी! बाबूजी? एम्हर ताकू ने! हमरा चिन्है छि‍ऐ? हम के छी कहू ते?”
सोनाजी आब देखि‍ नै पबथि‍। मुदा जखनि स्‍मरण लौटैत रहनि‍ तखनि अवाज परेखि नजरि घुमा-घुमा एम्हर-ओम्हर ताकि देखैक परि‍यास करैत रहथि‍। कहलखि‍न-
हँ, चिन्है छी! उषा दाइ छी ने अहाँ? केतए छहक आगु आबह ने।
आइ अस्पतालमे नअ दिन भऽ गेल रहनि‍। एकटा जाँचक रिपोट आइ आएत। दस बजे डाक्‍टर बजौने छथिन। उषाक पति आ उषा रिपोटक जानकारीले क्लिनीकपर पहुँचला। कनीए कालक पछाति कम्पाउण्डर अवाज देलकनि-
सोनाजीक गारजियन डाक्‍टर साहैब से मिलिए।
उषा दुनू परानी वेटिंग हाॅलमे बैसल रहथि‍, बोलाहटि‍ सुनि‍ते डाक्‍टरक चेम्बरमे पहुँचला, सोफा-कुरसी लागल रहए, बैसैक संकेतक पछाति दुनू गोटे बैस गेला। डाक्‍टर दुनू गोटेसँ सोनाजीक संग जे सम्‍बन्‍ध छेलनि तेकर परिचए लऽ कहलखि‍न-
मरीजक हालत गम्‍भीर अछि, रीकौभरक सम्‍भावना नै बँचल, जाबै धरि छथि‍, सेवा सत्कार करैत रहि‍यनु।
डाक्‍टरक ई बात सुनि, उषा बौक जकाँ भऽ गेल। मुँहपर रूमाल रखि सिसैक-सिसैक कानए लगली। उषाक पति सेहो अवाक् रहि गेला! तैयो जिज्ञासु भऽ डाक्‍टर साहैबसँ पुछलखि‍न-
डाक्‍टर साहैब! केना एना भऽ गेलनि‍?” 
डाक्‍टर कहलखि‍न-
फेंफड़ा हिनकर बिल्कुल खतम भऽ गेल छन्‍हि‍। ब्रेन ट्युमर सेहो बढ़ि‍ गेलनि‍ आ शरीरक आनो-आनो अंग सबहक कार्यक्षमता शि‍थि‍ल भऽ रहल छन्‍हि‍।
वि‍भिन्न तरहक वि‍मारी आ समस्याक वि‍षयमे वार्तालापक पछाति निष्‍कर्ष यएह भेलनि जे सोनाजीक बि‍मारी ठीक हेबाक कोनो गुंजाइश नै छन्‍हि‍।
दुनू बेकती नीराश भऽ चेम्बरसँ बाहर एला, उषा बाहर निकलिते भोकारि पाड़ि-पाड़ि कानए लगली। पति साहस बढ़बैत कहलखि‍न-
अहाँ जौं एना कनब तँ माएकेँ की हएत? शान्‍त रहू, मनकेँ बुझाउ! जे हेबक छै से तँ भाइए कऽ रहत। सुझि-बुधि‍सँ काम लि‍अ! माएकेँ ऐ बातक जानकारी नै चलक चाही। हुनको सम्हारि कऽ आब अहींकेँ राखए पड़त ने। नै कानू। चूप रहू।
उषो सोचलनि‍ जे अखनि हमरा कानबसँ नोकसान छोड़ि आर कि‍छु नै हएत। कहुना मनकेँ बुझबैत चुप भेली। सोनाजी कमरामे बेडपर पड़ल रहथि‍, बगलमे ममता पंखा हौंकैत रहनि‍, तइ बगलमे पजरा लागि उषा बैस गेली आ सोनाजीकेँ मँुह निहारए लगली।
बेटा सभ टाल-मटोल करैत पि‍ताक पराण छुटैकाल गाम आएल जखनि‍ सोनाजी केकरो ने चिन्ह सकै छेलनि आ ने केकराे देखिए सकै छला।
 
ललन कुमार कामत
सम्पर्क-
ललमनियाँ, मरौना, सुपौल।

गोल इंग्लिश गार्डेन निर्मली।

सनेस (क. जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

सनेस



तुलसी बाबा जहि‍ना हलसि‍ कऽ रामायण गढ़ि‍ तूल देलनि‍ जे, “हरि‍ अनन्त हरि‍ कथा अनन्‍ता” तहि‍ना ने “मनु अनन्‍त मनुआँ अनन्‍ता” सेहो होइ छै। एहने अनन्‍तमे पण्‍डि‍त कक्काक जि‍नगी सेहो वौआ गेलनि‍। जेकर ओरे-छोर ने रहत तइमे लोक ने हेराएत तँ हेराएत कइमे। तहूमे जे हेराइबला रहैए ओ तँ हेराइते अछि‍। घरोमे लोक हेरा जाइए। मुदा बि‍नु ओर-छोरक जे अछि‍ तइमे लोक हेरेबो केना करत। हेराइते बेर ने हरण होइ छै। जँ सीते नै हेरैतथि‍ तँ हरण कि‍ए होइतनि‍। ओ जँ केतौ बौआइत रहत तँ ओही अनन्‍तमे कि‍ने। तखनि‍ ओ हेराएब केना भेल। हेराइ तँ लोक ओतए अछि‍ जेतए एकसँ दोसरमे चलि‍ गेल, रामक सङ्ग छोड़ि‍ सीता जेना रावणक सङ्ग गेली। मुदा एक छोड़ि‍ दोसर जेतए अछि‍ए नै तेतए लोक जाएत केतए। ओहीमे ने जहि‍ना सभ अछि‍ तहि‍ना ओहो अछि‍। पण्‍डि‍त काकाकेँ सेहो तहि‍ना भेलनि‍। बच्‍चेसँ चकि‍तगर रहथि‍, पढ़ै-लि‍खै दि‍स मन झूकलनि‍। पढ़ै-लि‍खैक एकछाहा भाषो आ वि‍षयो, तँए पण्‍डि‍त काका संस्‍कृते वि‍द्यालयमे नाओं लि‍खौलनि‍। ओना पनरह आनासँ बेसीए पढ़ै-लि‍खैसँ दूर हटल अछि‍। धरतीसँ अँकुरि‍ भाषा-साहि‍त्‍यक गाछ बनल अछि‍। जइमे गमैआ वैद जकाँ, जे अमेरि‍का, इंगलैंडक दवाइसँ उपचार नै करि‍, बोन-झार, खेत-पथारक जड़ी-बुटी चुनि‍ औषध बना रोगक उपचार करै छथि‍, जे एक धारा बनि‍ धरतीकेँ सींचैए तहि‍ना संस्‍कृतो भाषा-धारा छी। तेतबे नै अदौक धार छी, जे अखनो बहैए। मुदा कोनो धारा ताबे तक अपन समुचि‍त गति‍ए प्रवाहि‍त होइत रहैए जाबे तक ओकरा अनुकूलता भेटैत रहै छै। जेना इति‍हासक मध्‍य कि‍छु राजो शासनक अछि‍। तँए ओइ कालखण्‍डमे भाषो-साहि‍त्‍य फुलाएल फड़ल। मुदा धरतीपर बहैत धारक धारा आ वि‍चारक दुनि‍याँमे बहैत धाराक बीच दूरी तँ कि‍‍छु भाइए जाइ छै, मुदा ओ दूरी पाटत के? पटाएत केना? जे से सि‍ञ्चि‍त भऽ रूप-सौन्‍दर्य पसारत। ‘लघु सि‍द्धान्‍त कौमदी’केँ पण्‍डि‍त काका तेना कऽ धुथुरक पीसल बीआ मि‍ला चटलनि‍ जे पढ़ैक नि‍शाँ लगि‍ गेलनि‍। आन काज की भेल आ की नै भेल तैपर ओते धि‍यान नै दऽ पढ़ैपर नजरि‍ गड़ल रहै छेलनि‍। तहूमे गीताकेँ तँ चाटि‍ए गेल छला। पण्‍डि‍त काका आ अपन बीच एतबे सम्‍बन्‍ध अछि‍ जे जखनि‍ नि‍चेन (काजसँ) रहै छी तखनि लगमे आबि‍ बइसै छि‍अनि‍ तँ रामायण, गीता, महाभारतक गप-सप्‍प कहै छथि‍। सुनैकाल सुनै छी। मुदा काज (जि‍नगीक उद्यम) तँ अपने जुति‍ए ने करै छी। अपना जुति‍ए कि‍ करै छी काजक जुति‍ए करै छी। काजेक जुति‍केँ कन्‍हेठ अपन जुति‍ लगबै छी। काजोक तँ अपन जुति‍ होइ छै। मुदा समाजक लोक पण्‍डि‍त काकाकेँ नि‍शाँएल थोड़े बुझै छन्‍हि‍, बुझै तँ छन्‍हि‍ भूतलगुए। नि‍शाँएल तँ ओतए ने भेल जेतए सार-असारमे बदलि‍ सारीलक स्‍वरूप धरैत। मुदा ओ तँ जि‍द्दक आड़ि‍एपर बैसल छथि‍। मानि‍ नेने छथि‍ जे जहि‍ना ओ (समाजक) सभ नै सुनत तहि‍ना की‍ अपन मुँह सीब लेब। जेकर जे काज रहतै, रस्‍तो चलैत रहब आ बजि‍तो रहब, सुनि‍ कऽ बुझलक तँ बड़बेस नै तँ हमहूँ बजलौं ओहो सुनलक। सुनै आ बुझैमे भेद छै। भेद ई छै जे कि‍छु करैक उदवेग बुझला पछाति‍ अबैत, मुदा सुनब सुनब भेल। सुनि‍ओं सकै छी अनसुनि‍ओं कऽ सकै छी।
ओना पण्‍डि‍त कक्काक जनम पाँच बीघाबला कि‍सान परि‍वारमे भेल छन्‍हि‍। शुरूहेसँ (बच्‍चेसँ) पण्‍डि‍त काका माता-पि‍ताकेँ जनमदते नै जि‍नगीक जनमदाताक गुरु सेहो मानै छथि‍। जनमदते ने जनमबैक बाट पकड़ा जनमदाता बनबै छथि‍, तँए गि‍रहस्‍तीक सभ लूरि‍ पि‍तासँ सीखि‍ अपन जीवन-जापन करै छथि‍। गीताक तेते अध्‍ययन केलनि‍ जे कि‍छु लि‍खैक वि‍चार उगना महादेव जकाँ उगलनि‍। पचपन बर्खक अवस्‍थामे कि‍ताब लि‍खि‍ छपबौलनि‍। गुण रहलनि‍ जे दुइए सए छपौलनि‍ नै तँ पाँच कट्ठाक बदला बीघा चलि‍ जइतनि‍। ने कि‍यो कि‍ताब कीनलकनि‍ आ ने अपने केतौ बेचए गेला।
जहि‍ना कोनो बेमारी परि‍वारमे भेने परि‍वारबलाक नजरि‍ ओइ दि‍स बढ़ै छै, बाढ़ि‍ एलापर बाढ़ि‍क दुश्‍मन दि‍स बढ़ै छै, रौदी भेलापर रौदीबाबाक सराध-वि‍टाइर केना हेतनि‍, तइ दि‍स बढ़ै छै, इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍, तहि‍ना कि‍ताबक छति‍ पण्‍डि‍त कक्काक मनकेँ पण्‍डि‍तौपन दि‍स रेड़लकनि‍। रेड़ पड़ि‍ते मन फुड़फुड़ेलनि‍ जे जे कि‍ताबमे समए लगौत ओ समए बेकार चलि‍ जाए तँ जरूर केतौ रस्‍तामे आँकर-पाथर ढेरियाएल अछि‍। प्रश्न उठि‍ते, जहि‍ना अस्‍पतालमे रोगीक पहि‍ल जाँच करैत डाक्‍टर वि‍भागीय वार्ड दि‍स पहुँचा दैत तहि‍ना पण्‍डि‍त काकाकेँ सेहो भेलनि‍। मुदा लगले ऊपर-झपकी भेलनि‍ जे एहेन प्रश्नसँ एतेटा जि‍नगीमे भेँट कहाँ कहि‍यो भेल छल, फेर भेलनि‍ जे एहेन काजे दोसर कोन केने छेलौं जे भेँट होइत। तँ की काजे बुधि‍ जनमबैए आकि‍ काजकेँ बुधि‍ जनमबै छै। जेते पण्‍डि‍त कक्काक पण्‍डि‍ताउ बढ़ल जान्हि‍ तेते पसि‍ना देहसँ नि‍कलए लगलनि‍। पसि‍ने ने दुनि‍याँक पसन्‍द भेल। जेते पसि‍ना छुटत तेते सुख भेटत। मुदा लगले मन अपना दि‍स पाछू उनटलनि‍। उनटलनि‍ ई जे पचपन बर्खक मेहनति‍क फल उपयोगी नै भेल। जँ फले खट्टा भऽ गेल तँ जि‍नगी केना मीठ भेल। जँ जि‍नगी मीठ नै भेल तँ अनेरे कि‍ए एते समैकेँ शरबत बना पीब लेलौं। मुदा शरबतो तँ परखए पड़त जे सोझहे मधुरस छी आकि‍ भङ्गरस। अपनापर ग्‍लानि‍ जगलनि‍ जे अपनेमे अपने गड़ए लगला। पि‍ताक देल जत्‍था-जमीन बोहा पोथी लि‍खलौं आन बुझह आकि‍ नै बुझह मुदा अपने तँ बुझि‍ते छी जे सएओ टि‍प्‍पणीक सङ्ग गीता पढ़लौं। तेकरा नेबो जकाँ नि‍चोरि‍ ने पोथीक सृजन केने छेलौं। तखनि‍? पोथी मौलि‍क भेल की‍ समीक्षा। जँ समीक्षा भेल तँ सृजन केना भेल? जँ सृजन नै केलौं तँ सि‍रजलौं की जे लोक पुछैत। फेर जेना ग्‍लानि गरए लगलनि‍। ग्‍लानि‍सँ गड़ैत दुनि‍याँमे प्रवेश केलनि‍। जेते लि‍खि‍नि‍हार तेते रङ्गक वि‍चार। एना कि‍ए भेल? जे व्‍यासजी गीता लि‍खि‍ खुट्टा गाड़ि‍ देलनि‍। जे सर्वोत्तम जि‍नगी जीबाक सूत्र लि‍खि‍ सुतिआ लेलनि‍, मुदा एते वि‍चारक की कारण? प्रश्न मनकेँ रोकि‍ कहलकनि‍-
अनेरे जहि‍ना पचपन बरख बौएलौं तहि‍ना छपनमो बर्ख बौआइते ढहनाएब। हूबा करू। फेर पढ़ू फेर लि‍खू। मुदा हूबटुटु बनि‍ जि‍नगी नै जीबू। 
गीताक समीक्षा लि‍खि‍ वि‍षयकेँ अन्‍त करैत लि‍खलनि‍-
जँ पूजी जगदम्‍ब तँ आनक पुजन व्‍यर्थ। नै पूजी जगदम्‍ब तँ आनक पुजन व्‍यर्थ। सभ जि‍नगीक खेल छी, जेहेन जि‍नगी तेहेन वि‍चार, तखनि‍ अनेरे लोक ि‍कए मीठहा छोड़ि‍ खटहा फल खा खटही बनत।
मन मानि‍ गेलनि‍ जे दुसैएबला काज तँ करबे केलौं, कि‍ए ने कि‍यो दुसत जे कि‍ताब छपैक प्रेस एते सस्‍ता भऽ गेल तँ दुइए सए कि‍ताब छपबैमे एते कि‍ए खर्च भेल? मुदा भाय, जेते मोट-मोट कि‍ताब पढ़ि‍ नेने छेलौं तइसँ पातर केना लि‍खि‍तौं। गीता पढ़ि‍ गीते आकारक पोथी लीखि‍ पाँच कट्ठाक दाम सबा लाख गमेने छेलौं, मुदा तहि‍ना जँ अहाँ अपन गतातीक प्रेसक खर्च आ सए पृष्‍ठक कि‍ताब बुझैत होइएे, ई दीगर भेल। मुदा से नै तीन हजार पृष्‍ठक पोथी, तेकरा रैक्सि‍नक गत्तासँ गतानि‍ छपबौने छेलौं, अपन बोइन-बुत्ता छोड़ि‍ पनरह सए मुल्‍यो रखने छेलौं। मुदा सभटा पड़ले रहि‍ गेल। ओना अखनो बड़ दुख नहि‍येँ अछि‍, कि‍एक तँ कोनो की हमरेटा पड़ल रहल आकि‍ आनो-आनकेँ अहि‍ना पड़ल छन्‍हि‍। जखनि‍ आनो-आनकेँ भेल तखनि‍ तँ यएह ने नीक भेल जे जे भेल से सभ मि‍लि‍ एकेबेर छातीमे मुक्का मारि‍, कनैक लय बदलू। जहि‍ना पहाड़ी रस्‍ता टपला पछाति,‍ समतल जमीनक रस्‍ता आ गाछक छाहरि‍ भेटलापर जे मन हरखि‍त होइ छै तहि‍ना पण्‍डि‍त काकाकेँ सेहो भेलनि‍। हरखि‍त मन होइते गर गड़ेलनि‍। गर गड़ाइते मन हनहनेलनि‍ जे जहि‍ना गमैआ वैद गामेक खेत-पथार, वाड़ी-झाड़ी, बोन-झार, गाछी-कलम आ बँसबाड़ि‍सँ जड़ी उखाड़ि‍ ओकरा जड़ि‍या औषध बना रोगक उपचार करै छथि‍ तहि‍ना करब। ठीके पि‍ताजी कहै छला जे मौसमक अनुकूल सभकेँ चलक चाहि‍एे। जेहेन समए तेहेन काज जेहेन काज तेहेन भोजन, तेहेन रहन-सहन बनेनहि‍‍ ने मौसमक सङ्ग चलि‍ पेबै। तँए बरहमसीआ खेतीक प्रयोजन पड़ै छै।
सोचि‍ते-वि‍चारि‍ते पण्‍डि‍त कक्काक मन मानि‍ गेलनि‍ जे नव सि‍रासँ (नव शीर्षकक नाओंसँ) कि‍ताब लि‍खब। मुदा लगले मनमे उठलनि‍ जे पहि‍लुक पोथी तीन हजार पृष्‍ठक छल, तँए काज तँ ओइसँ बेसी लि‍खने बढ़ि‍याँ भेल। जँ तीन हजार पृष्‍ठसँ आगू चारि‍ हजार पृष्‍ठक लि‍खब तखनि‍ ने तरका (तीन हजारक) दबाएत। जँ से नै हएत तँ अगि‍ला ओहि‍ना अलगले रहत कि‍ने। झोंकाएल मन पण्‍डि‍त कक्काक झोंकमे, पुर्बा झोंकमे पछि‍म आ पछि‍या झोंकमे पूब दि‍स जहि‍ना गाछो-बि‍रि‍छ झूकि‍ जाइत तहि‍ना भेलनि‍। मन पड़लनि‍ अपन ओ दि‍न जइ दि‍न गीताकेँ (महाभारत अंश गीता) जि‍नगीक मुँहक गीत गबैत सुनने रहथि‍। कानक सुनल, कोनो मुँहक बाजल, झूठ केना हएत। मन ठमकलनि‍, आगू बढ़ैसँ जाँघ थरथरेलनि‍। थरथरेलनि‍ ई जे एक तँ जि‍नगी भरि‍क पढ़लाहा हेरा रहल अछि‍, दोसर सि‍रा पकड़ि‍ लि‍खैक अछि‍, पचपन बर्खक उमेरक तँ कोनो मोजरे ने भेल आ जँ कहीं अगि‍लो सएह भेल, तखनि‍ तँ ओहन आमक गाछ आकि‍ कोनो आन फलक गाछ जकाँ जे छाँह तर पड़ि‍ कहि‍यो फुलेबे ने करैए जेकर आम जकाँ मोजर हएत। जखनि‍ मोजरे ने तखनि‍ फल केहेन फड़त। मुदा काजो तँ असान नहि‍येँ अछि‍। आगू-पाछू देखैत वि‍चारए लगला। आब की उपए? नव शि‍रासँ नव बात बि‍ना बुझने-गमने केना आगू बढ़त? ई तँ नै जे सभ पञ्च लबरे भऽ जाए। जँ आगू नै बढ़त, तँ कलमक धार केना फुटत?  जँ कलमेक धार नै फुटत तँ सादा कागतपर चारि‍ हजार पृष्‍ठ उतरत केना? मुदा केकरोसँ पुछबो केना करब? सभ तँ अपने बेथे बेथाएल अछि‍। दि‍न-राति‍ जे परि‍वार ले (बेटा-बेटी, पत्नी) दौड़ रहल अछि‍ ओकरा एते पलखति‍ कहाँ छै जे अपना परि‍वारमे बैसि‍ परि‍वारक तानी-भरनी ठीकसँ चलौत। जाबे सुतकेँ तानी-भरनीक बीच तानि‍ कऽ नै तनि‍याएल जाएत ताबे ओ अम्‍बर केना बनत? प्रश्न ई नै जे पुछबो केना करबै? प्रश्न ई जे केकरासँ पुछबै? की गीताक टीकाकारसँ आकि‍ व्‍यास रचनाकारसँ। नै चारि‍ हजार पृष्‍ठक कि‍ताब लि‍खैमे अदहा वि‍चार गीताक लेब, आ अदहा समाजक। जँ से नै करब तँ गीताक गुण तरेतर हृदैकेँ तेना सि‍हरा कऽ सड़नि‍ करए लगत जे देहे-हाथ कठुआ जाएत। काजे ने कएल हएत।
दू साल बीत गेल। सौन मासक हरि‍अर चास गाममे लहलहाइत। नि‍च्‍चे-ऊपरे खेती भऽ गेल। जे खेत जेना रोपल गेल से खेत तेना हरि‍अरि‍ओ बेसी पकड़ैत गेल, मुदा लगक रोपल (काल्हि‍-परसू) कोनो पतसुखू, तँ कोनो धड़सुखू तँ अछि‍ए। चैत-बैसाखक सुखाएल अधसुखाएल धारो-धुर आ डाबरो-पोखरि‍ फुला गेल। पतझड़ गाछ-बि‍रि‍छ सौनक सोहनगर समीर आ शीतल सलि‍ल पाबि‍ अपन वस्‍त्रे झूकि‍ गेल। काल्हि‍ साँझमे पण्‍डि‍त कक्काक पाँच हजार कि‍ताब गाड़ीसँ उतरलनि‍। पहि‍ल साँझ दीप नै बरल तँए झलअन्‍हारमे बण्‍डल खोलब नीक नै बूझि‍ सोझहे थकि‍आ कऽ कोठरीमे रखि‍ लेलनि‍।
खेला-पीला पछाति‍ जखनि‍ ओछाइनपर पण्‍डि‍त काका पड़ला आकि‍ पछि‍ला कि‍ताब (गीताक पोथी) मन पड़लनि‍। मन पड़ि‍ते कबुल लेलनि‍ जे पि‍ताक सम्‍पति‍ नष्‍ट केलि‍यनि‍। मुदा कननौं तँ नहि‍येँ हएत? जि‍नगी सदति‍ हार-जीतक बीच चलि‍ते अछि‍, कि‍यो अफसर नि‍चलाक ऊपर रोब झाड़ैए तँ ऊपरकाक रोब सहबो करैए। कि‍ताबकेँ खाली बेपारक सौदा नइ बना जि‍नगीक सौदा बना जि‍नगीक बीच रखि‍ परि‍चएओ-पात देब नीक हएत। जँ से नै परि‍चए-पात देबै तँ एहनो तँ भाइए सकैए जे ओइ दि‍स पढ़नि‍हारक नजरि‍ए ने जाए। दुनूकेँ (कि‍ताबक परि‍चयो आ बि‍करीओ) नजरि‍मे रखि‍ पण्‍डि‍त काका निर्णए केलनि‍ जे कि‍ताब लऽ कऽ दोसराक दरबज्‍जापर परि‍चए करा कऽ ढौआ लेब। मुदा तइसँ अलग दोसराइत के? अदहासँ बेसी लोक कि‍ताब पढ़ैबला नै छथि‍। तखनि‍? जँ पढ़नि‍हारो परि‍वार अछि‍ओ आ कोनो रूपक सम्‍बन्‍ध नै रहल अछि‍ तैठाम केना जाएब। आन कोनो दरबज्‍जापर जेबाक रस्‍ता होइ छै, जइ रस्‍ते लोक जाइए। मुदा लगले जेना भक्क टुटलनि‍। भक्क ई टुटलनि‍ (जेना भकमोड़क रस्‍ता केकरो देखल रहै छै) जे साहि‍त्‍य प्रेमी जे पाठक छथि‍, ओ तँ अङ्गीते भेला। सामाजि‍क अङ्गीतो तँ छथि‍ए तैसङ्ग परि‍वारि‍क अङ्गीत सेहो छथि‍ए, दस रङ्गक पोथी पाँच हजारक अछि‍, पँच-पँच सए भेल, जखनि‍ कि‍ लेबाल (कि‍ताब कीनि‍नि‍हार) पाँचो हजारसँ ऊपर छथि‍ तखनि‍ काज असाध केना भेल। लगले मन कि‍ताबक छपाइ-कढ़ाइ दि‍स बढ़लनि‍, हाथक लि‍खल लोहाक मशीनमे गेल आ लोहासँ नि‍कलि‍ हाथमे औत, अनेरे दुनूक बीच तीन बेर चढ़ा-ऊतरी भेल। छूट-छाट, भूल-चूक भेले हएत। तैबीच जँ दोहरा कऽ कि‍ताब पढ़ए लगब से सम्‍भव नै, कि‍ताबक थाक तौलाक भात थोड़े छी जे एकटा चाउर टोबने बूझि‍ जेबइ। एका-एकी छपाइ भेल, तँए एकक भूल-चूक दोसरोमे हएत आकि‍ दोसरो भूल-चूक अछि‍, बूझब कठि‍न अछि‍। तँए नीक ई जे सभकेँ एके नि‍वेदि‍त जे भूल-चूक भेल हुअए, से चेतौनी देब जइसँ आगू चेतल जेतइ।
पड़ले-पड़ल पण्‍डि‍त काका ऐठाम पहुँच गेला जे कि‍ताब लऽ घरसँ नि‍कलब। मुदा घरसँ नि‍कलैसँ पहि‍ने यात्राक दि‍शा तँ देखए पड़त। जँ से नै देखब तँ अनेर कुयात्रा हएत, जखने कुयात्रा भेल तखने गाड़ी जकाँ काजो दब-उनार भऽ जाएत। जखने दब-उनार भेल तखने गाड़ी उनटैक सम्‍भावना आबि‍ जाइए। जखने सम्‍भावना औत तखने अथाह दि‍स बढ़ब भेल। फेर मोड़पर अबि‍ते मन घुरलनि‍। अथाह तँ समुद्र होइए, पोखरि‍-झाँखरि‍ तँ थाहल होइए, तेकरो नपैले तँ लोक फैदम बनाइए नेने अछि‍ तखनि‍ सम्‍भावि‍त केना भेल? ई बात अछि‍ जे मौसमक (समैयक) गति‍-वि‍धि‍ (रौद-हवा इत्‍यादि)‍ रस्‍ताक बाधक बनैए तँ वि‍परीत दि‍शामे बढ़ने चलैमे सुभि‍ता होइत, मुदा जँ काज धारक सि‍रा जकाँ हुअए तखनि‍ छोड़ब नीक हएत आकि‍ बढ़ि‍ कऽ करब नीक हएत। दि‍न-बेरागनक वि‍चार काजक हि‍साबे नीक होइ छै। निर्णएक लग पहुँचैसँ पहि‍ने मनमे एलनि‍ जे दुनि‍याँमे दोसराइत हुअए आकि‍ नै मुदा सङ्गीक सङ्गि‍नी तँ लगेमे छथि‍, कि‍ए ने पहि‍ल वि‍चार हुनकेसँ लऽ ली। आखि‍र ओहो तँ ओहि‍ना ने सङ्कल्‍प केने छथि‍‍ जे जि‍नगी भरि‍ घरसँ बाहर धरि‍ वि‍चारक सङ्ग रहब जे जि‍न्‍दा दि‍ल, दि‍ल खोलि‍ सङ्कल्‍प जि‍नगी भरि‍क लइ छथि‍। पोखरि‍क पानि‍ जकाँ पण्‍डि‍त कक्काक मन थीर भेलनि‍। बजला-
सूतल छी?”
‘सूतल छी’ सुनि‍ रेशमा सगबगेबो ने केली। एक तँ ओहुना गमैआ चौकीदारकेँ तीन हाक देबाक अधि‍कार छै, तँए पहि‍ल हाकक जवाब देब जरूरीओ तँ नहि‍येँ अछि‍। फेर मनमे नाचि‍ उठलनि‍, हो-न-हो जँ कहीं एहेन वि‍चार मनमे आएल होन्‍हि‍ जे एक बेरसँ दोसर बेर साँपक मंत्र जकाँ, नै डाकनि‍ देल जाइ छै, तखनि‍ नै कि‍छु बाजब उचि‍त नै हएत। मुदा उत्तरक समैकेँ हुसैत देखि‍ रेशमा वि‍चारलनि‍ जे बोलसँ नै, खोंखी कऽ कऽ जगैक सूचना देबनि‍। अपनो मन कहतनि‍ जे भरि‍सक भकुआएलमे नै सुनलनि‍। मुदा लगले भेलनि‍ जे, लोक जगलो ओछाइनपर पड़ल रहैए, मन जागल रहै छै, देह पड़ल छै, ओकरो तँ सूतबे ने कहल जाइ छै। केना ओ (पति‍) बुझलनि‍ जे सूतले हेती। अखने छनेक पहि‍ने ओ खा कऽ ओछाइनपर एला, तेकर पछाति‍ अपने खेलौं, बासन-कुसन, थारी-लोटा अखारि‍, कुत्ता-बि‍लाइ दुआरे सहि‍आइर कऽ रखि‍ अखने ओछाइनपर एलौं आ जखनि‍ ओ पहि‍ने एला तखनि‍ जगले छथि‍ आ पछाति‍ कऽ हम एलौं तँ नीन पड़ि‍ गेलौं। जरूर केतौ सोचमे शङ्का भऽ रहल छन्‍हि‍। हमहूँ तँ सगीए छि‍यनि‍ कि‍ने, कि‍ए ने कनी आगरे करि‍ थारीमे परोसि‍ दि‍यनि‍। मधुबनक मधुआएल मधुमाछी जकाँ भनभनाइत स्‍वरमे रेशमा बजली-
सूतलोमे बौअनी नै छूटल जे नि‍सभेर राति‍मे बपहारि‍ कटै छी?”
पत्नीक बातसँ पण्‍डि‍त काकाकेँ मनमे दुख नै भेलनि‍, खुशीए भेलनि‍। खुशी ई भेलनि‍ जे भरि‍सक कोंचा-कोंची अखनि‍ धरि‍ बन्हनइ छथि‍, तँए एहेन टाँस बोल भेलनि‍। मधुरस पीनि‍हारकेँ जहि‍ना मधुमाछीक डङ्कक दर्द मनसँ मेटा गेल रहै छै तहि‍ना पण्‍डि‍तो काकाकेँ मेटा गेलनि‍। बजला-
एकटा बेगरता भऽ गेल?”
‘बेगरता’ सुनि‍ पण्‍डि‍ताइन काकी अकचकेली। अकचकेली ई जे अरामोक अवस्‍थामे जि‍नका कोनो बेगरता होइ छन्‍हि‍, तँ जरूर ओइ बेगरता वस्‍तुक काजमे मन लगल छन्‍हि‍। बजली-
केहेन बेगरता अछि‍?”
जहि‍ना कि‍यो केकरो बेगरता सम्‍हारि‍ दुखकेँ सुखमे बदलि‍ दइ छै तहि‍ना पण्‍डि‍तो काकाकेँ भेलनि‍। बजला-
कि‍ताब लऽ कऽ नि‍कलब, से कोन दि‍न नीक हएत?”
पण्‍डि‍ताइन काकी बजली-
देखू, पुरुखक जतराकेँ ठेकान नै छै, मुदा काजक बेगरता हि‍साबे महि‍ला अपन दि‍न-बेरागन बना नेने छथि‍। जँ से नै छथि‍ तँ कि‍ए लगनक भदबा माफ अछि‍।
जहि‍ना कोनो जन्‍तु दोसरकेँ धरऽ दौड़ैत तहि‍ना पण्‍डि‍त काकाकेँ पत्नीक बोल धेलकनि‍। मनमे ठानि‍ लेलनि‍ जे काल्हि‍ कि‍ताब लऽ कऽ घरसँ नि‍कलि‍ जाएब। मुदा जाएब केतए? मात्रि‍क अङ्गीतक जाल छी नि‍च्‍चाँ-ऊपर तेना ओझराएल अछि‍ जे जँ कि‍यो सुनि‍नि‍हारो तँ कि‍यो नहि‍योँ सुनि‍नि‍हार (जे उम्रक वा सम्‍बन्‍धक) तँ छथि‍ए, तहि‍ना सासुरो भेल। नीक हएत जे जैठाम कम सम्‍बन्‍ध अछि‍ ओतए जाएब। टोहि‍यबैत पण्‍डि‍त काका सढ़ूआरए चुनलनि‍। सारि‍क घर छी, कहि‍या केतए सँ गपो-सप्‍प बाँकी अछि‍। बेटो हाइ स्‍कूलमे पढ़ि‍ते छन्‍हि‍, साढ़ू अपने ने नै पढ़ल छथि‍।
दोसर दि‍न पचासटा कि‍ताबक मोटरी बान्‍हि‍ कन्‍हि‍या पण्‍डि‍त काका सढ़ूआरए पहुँचला। दरबज्जापर पहुँचि‍ते साढ़ू आगूसँ मोटरी उतारि‍ चौकीपर रखि‍ गोड़ लगलकनि‍। गोड़ लागि‍ आङ्गनसँ लोटामे पानि‍ आनि‍ पएर धुआ पुछलखि‍न‍-
बड़ भारी मोटरी अछि‍।
कि‍ताब सुनि‍ सिंहेश्वर बेटाकेँ सोर पाड़ि‍ बजला-
बौआ, जाबे साढ़ू दरबज्‍जापर रहथि‍, ताबे अहाँक भार भेल। कि‍ताबक मोटरी छि‍यनि‍ से देखैत-सुनैत रहब।
बि‍च्‍चेमे सारि‍ आबि‍ एक चुटकी अबीर पण्‍डि‍त कक्काक आगूमे उड़ि‍या गेली। शान्‍त जगह देखि‍ पण्‍डि‍त काका सरबेटाकेँ पुछलखि‍न-
बौआ, की नाओं छी?”
श्‍याम सुन्‍दर।
कोन कि‍लासमे पढ़ै छी?”
दसमामे।
सुनि‍ पण्‍डि‍त काका बजला-
बौआ, जि‍नगी भरि‍क काजक मोटरी छी। अहीं सन लोकक खगता अछि‍, काजो-एहेन अछि‍ जे अहूँकेँ नीक आ हमरो नीक हएत।
दुनूक नीक सुनि‍ चकोना होइत श्‍याम सुन्‍दर बाजल-
से की?”
‘से की’ सुनि‍ पण्‍डि‍त कक्काक हृदैमे हि‍लकोर उठि‍ गेलनि‍। बजला-
बौआ, जँ बच्‍चा बच्‍चेसँ काजक लूरि‍केँ कन्‍हि‍यबैत चलए तँ ओ माए-बापक भारक मोटा कम करैत अपना ऊपर ठाढ़ भऽ जाइए। श्रवण कुमारक कथा सुनने हएब। केना सीक-पटैपर माए-बापकेँ कन्‍हेठ, चारू-धाम करए वि‍दा भेला। तँए अहूँ कि‍ताबो बेचू आ पढ़बो करू। काजसँ लजाउ नै जखने काजसँ लजाएब तखने लजबि‍जी जकाँ लाज-बीज रहि‍तो अकाजक दुनि‍याँक खाधि‍मे खसब। जेकरा काँटक दुआरे ने माल-जाल खाइए आ ने हाड़-गोड़ दुआरे लोके पुछै छै।
पण्‍डि‍त कक्काक वि‍चार सुनि‍ श्‍याम सुन्‍दरक हृदए सि‍हरि‍ गेल। सि‍ससि‍राइत बाजल-
मौसा, अहाँक वि‍चारसँ जेना देहक मासु फनफना रहल अछि‍, अपनोसँ भेँट-घाँट करैत करब। अखनि‍ अपनेक वि‍चार शि‍रोधार अछि‍।
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१६ अगस्‍त २०१४

Sunday, August 10, 2014

चोरक चोरबती (बाल साहि‍त्‍य)

चोरक चोरबती



आने दि‍न जकाँ आत्‍मानन्‍द बाबा दि‍न लहसि‍ते अपन काज उसारि‍, दि‍शा-मैदानसँ आबि‍ दरबज्‍जाक आँगनमे सोंफ बीछा बैसि‍ते रहथि‍ आकि‍ सुगि‍या दादी चाह नेने आगूमे ठाढ़ भेली। गर लगा कऽ बैसि‍ते (गरक माने ई भेल आत्‍मानन्‍द बाबा बि‍छानक एक छोरपर बैसि‍ आगू दि‍स तकैत अगि‍ला छोर बच्‍चा सभले छोड़ि‍ देलखि‍न) हाथमे चाहक गि‍लास धड़बैत दादी ई सोचि‍ ठाढ़ भऽ गेली जे कि‍छु खगता हेतनि‍ तँ बजबे करता, तइ सुनैले। मुदा सभ काजक गर देखि‍ बाबा चुपे रहला। बतलग्‍गू रोग तँ धेने नै छन्‍हि‍ जे अनका जकाँ अनेरो कि‍छुसँ कि‍छु बजैत रहलौं। ि‍कछु समए अँटकला पछाति‍ दादी बूझि‍ गेली। आँगन दि‍स घूमि‍ गेली। तेतबेमे टोलक इस्‍कुलि‍या धि‍या-पुता एकाएकी आबए लगल। बाबाकेँ चाह पीबैत देखि‍ आगूमे, बाबा दि‍स घूमि‍-घूमि‍ बैसैत गेल। अँगनाक डेढ़ि‍यापर अबि‍ते सुगि‍या दादी पाछू उनटि‍ तकली‍ तँ चारि‍-पाँचटा बच्‍चा देखि‍ मन मुस्‍कीयेलनि‍‍। मुस्‍कीयेलनि‍ अपन नि‍अमि‍त काजपर। जँ कनीओं बि‍लम होइतए तँ अगि‍ला काजमे बुड़हाकेँ बाधा होइतनि‍ कि‍ने? जेकर भागी के बनैत? अपन पति‍व्रत नि‍अम मनमे जगलनि‍। जगि‍ते ठोर पटपटेलनि‍-
पति‍व्रत काजक रूपमे नै मात्र लोक शब्‍दक रूपमे बुझैए।
मुदा लगले जेना कि‍यो ठोंठ पकड़ि‍ कऽ दाबि‍ देलकनि‍, तहि‍ना ठोरक पटपटी बन्न भेलनि‍। आँगनक ओसारपर बैसि‍ चाह पीबए लगली।
चाह पीबि‍ते बाबाक मन खनहन भेलनि‍। खनहन मन खनखनेलनि‍-
संच-मंच भऽ बैइसै जाह। जेकरा जे बुझैक हुअ से बेराबेरी बजै जाह।
कहि‍ते आत्‍मानन्‍द बाबाक मनमे उठलनि‍ जे अखनि‍ बाल-बोधक बीच छी, अखुनके रोपल आकि‍ सीखल बात ने जि‍नगीक बेसी समए पकड़त। माने ई जे दुनि‍याँमे हजारो-लाखो कि‍ताब पढ़नि‍हारकेँ आदि‍ अक्षर अ-आ होइ छै, जे जहि‍यासँ जनम लइए तहि‍यासँ मरै बेर तक, मरैए बेर कि‍ए कहबै तेकर पछाति‍ओ तँ रहि‍ते अछि‍। तँए जेहेन बात अखनि‍ कहबै तेहने हेतै। जेकर फला-फलक भागी भेने नीक-अधला सुनए पड़त। जहि‍ना जगरनाथ बाबा आ बैजनाथ बाबाक डोरी लगि‍ते मन छटपटए लगैए जे कखनि‍ जा कऽ दर्शन करी, तहि‍ना बच्‍चा सबहक मनमे उठल। अगुआ कऽ दस बर्खक गोवि‍न्‍दा बाजल-
बाबा, चोरक चोरबती केहेन होइ छै?”
गोवि‍न्‍दाक प्रश्न सुनि‍ बाबाक मनमे उठलनि‍, ‘चन्‍दा जुनि‍ उगु आजुक राति‍।’ इजोतेसँ भकइजोतो आ अन्‍हारो जनमैए। गाेवि‍न्‍दक जेहेन प्रश्न अछि‍ ओकर उत्तर ओ सम्‍हारि‍ सकत? मन सकपकेलनि‍। सकपकेलनि‍ ई जे अपनो तँ मनक संकल्‍पक प्रश्न अछि‍। अपनो तँ अखनि‍ तक ई नै निर्णए कऽ पेलौंहेँ, जे बच्‍चाक केहेन प्रश्नक उत्तर तत्काल देल जाए आ केहेन प्रश्नक उत्तर, खेत जकाँ जोति‍, कोड़ि‍ बीआ छीटि‍ छोड़ि‍ दि‍ऐ। अपनो तँ अखनि‍ तक यएह ने करैत एलौं जे कोनो प्रश्नक उत्तर केकरो कहए लगलि‍ऐ। चूक भेल, ई बात सत् जे दस बर्खक बच्‍चा होइ आकि‍ बारह बर्खक, ओकर नमहर प्रश्नक उत्तर दसे-बारह बरख धरि‍ देब नीक कि‍ अधला? मन घोर-घोर हुअ लगलनि‍। मुदा जेना कि‍यो धक्का मारलकनि‍ तहि‍ना चकोना होइत चौंकैत देखलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे अखनि‍ तँ बच्‍चा सबहक बीच छी। ओकरे मुँहक मूङकेँ ने मुङबा बना परसब। अपन जँ बँचल रहत तँ ओ पछाति‍ बाँटब। दही-चीनी भोजक पछाति‍ए बाँटब नीक होइ छै। जँ से नै होइ छै तँ अनेरे लोक कि‍ए पचताइए जे बेरक मारल बगूर तर। दुनू कँटाह। मुदा समए बलवान होइ छै, माछ-मासु छोड़ि‍ बबाजी भेलौं जे बि‍लाइ जकाँ गोरस चाटब, से ले बलैया ओहो लोहे महिंसक भऽ गेल। मुदा कि‍ करबै भाय, अपन हारल कनि‍याँक मारल जँ कि‍यो बजबे करत तँ ओकरा नीक के कहत। कनि‍याँक मारब तक अबैत-अबैत आत्‍मानन्‍द बाबाक मन पोखरि‍क पानि‍ जकाँ प्रज्ञ भेलनि‍। बजला-
बाउ गोवि‍न्‍द, तोहर प्रश्न बड़ हल्‍लुक आ बड़ झुझुआन बूझि‍ पड़ैए मुदा उत्तर भारी अछि‍, से...।
बाबाक प्रश्न सुनि‍ सभ बच्‍चाक कान ठाढ़ भेल। साँझू पहरमे जहि‍ना सभ नढ़ि‍या पण्‍डि‍त मि‍लि‍ एक्के बेर अन्‍हारक हल्‍ला करैए तहि‍ना सभ बच्‍चाक मनमे। मन पड़लनि‍ जे केराक गाछक खोंइचा माने डपोरक डोरी बनैए, जइसँ कोनो वस्‍तु बान्‍हल जाइए, तहि‍ना ने ओकर बि‍नु बूझल बातक डोरी बना बालो-बोधोकेँ बन्‍हैक जरूरत अछि‍। वि‍चारमे एकरूपता एलनि‍। लगले मन घूमि‍ डपोरक डोरी बनै केना छै, तइ दि‍स गेलनि‍। ऊपर जेते सूखल अछि‍ ओतैसँ चीरि‍‍ कऽ जीतहा चीरैत ने जड़ि‍मे तोड़लो जाइए आ छोड़ौलो जाइए। मुस्‍की दैत बजला-
बौआ सभ। आमक गाछीमे एकटा बगवार बती लऽ कऽ मचानपर सूतल रहै, अन्‍हार राति‍मे चोर सभ आबि‍, पहि‍ने ओकर बतीए चोरा लेलक आ पछाति‍ ओकरे बतीकेँ हड़पि‍ आमो बीछि‍ लेलक आ बतीओकेँ हड़पि‍ चोर बतीक मूड़न बि‍आह कऽ लेलक। तइ दि‍नसँ चोरक चोरबती गृहवासू भऽ गेल।
बाबाक खि‍स्‍सा सुनि‍ बच्‍चा सबहक बीच रंग-रंगक खेल पसरि‍ गेल। कि‍यो चोरक बुधि‍यारीक हि‍साब जोड़ए लगल जे केना भेल। तँ कि‍यो जोड़ैत जे गुण भेल जे चोरबतीए चोरौलक। ओहेन सूतलकेँ तँ जाने छोड़ि‍ देलक से गुण रहल। कि‍यो बाबाक नजरि‍पर नजरि‍ रखने जे‍ बाबा असली जगरनाथ बाबक दर्शन करौलनि‍ आकि‍ ऊपरमे राखल झपनाक? जेना-जेना बाबाक नजरि‍ आगू दि‍स खि‍ड़नि‍ तेना-तेना मनमे धि‍क्कार उठनि‍ जे आगू तकक बात कहि‍ देने अपन वि‍चारो आ रस्‍तो  बनौत। मुदा बाबाक मनक चटपटी देखि‍ गोवि‍न्‍द बूझि‍ गेल जे बाबा कि‍छु बाजए चाहै छथि‍, तइ बि‍च्‍चेमे अपन बात कि‍ए ने रखि‍ दि‍यनि‍। बाजल-
बाबा, नीक जकाँ नै बूझि‍ पेलौं जे अपने की कहलि‍ऐ?”
गोवि‍न्‍दक जि‍ज्ञासा बाबा अँकलनि‍। आँकि‍ कऽ गुलेतीक गोली जकाँ ठि‍कि‍आ कऽ बजला-
बौआ गोवि‍न्‍द, जेते दूर तक सुजोत चलैए, तेते दूर तक कुजोतो चलैए, केतौ-केतौ बेसीओ चलैए आ केतौ-केतौ कमो चलैए, मुदा से नै। वएह सुजोत कुजोतक बती बनि‍ चोरबती बनि‍ गृहवासू भऽ गेल।
बाबाक बात सुनि‍ अपन जि‍द्दपन धेने गोवि‍न्‍द बाजल-
बाबा, अखनि‍ सुनलाहा भेल, आँगन जा जखनि‍ ओकरा उचारब-वि‍चारब, तखनि‍ हँ-नि‍हँस काल्हि‍ कहब।
गोवि‍न्‍दक जि‍ज्ञासा देखि‍ आत्‍मानन्‍द बाबाक मनमे हौहटि‍-कलकलि‍ कुरि‍यबैत काल जकाँ सुआस पड़लनि‍। बजला-
बाउ गोवि‍न्‍द, काल्हि‍ले काल्हि‍ अछि‍। आइ ठीक छह कि‍ने?”
हँसैत गोवि‍न्‍द बाजल-
हँ बाबा।
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६ अगस्‍त २०१४

घर तोड़ि‍ देलि‍ऐ (नारी वि‍मर्श)

घर तोड़ि‍ देलि‍ऐ




पति‍-पुत्रक दुरघटनाक तीन मास पछाति‍ प्रमि‍ला कोठरीमे असगरे बैसल अपन भवि‍तब दि‍स देखि‍ रहल छथि‍। ओना अखनि‍ तक प्रमि‍लाकेँ एहेन वि‍चार मनमे कहि‍यो ने उठल छेलनि‍। नव-नव वि‍चार मनमे उठलनि‍। ओना ईहो कहि‍ सकै छी जे जहि‍ना दुनि‍याँमे हजारो रोग-वि‍याधि‍ (दैहि‍क, मानसि‍क) पसरल अछि‍, मुदा भेँट तँ तहि‍ये ने होइए जइ दि‍न ओकर आक्रमण होइ छै। डाक्‍टर तँ बेवसायी भेला, तँए ओ अपन पूजी बढ़बै दुआरे अनको रोग-वि‍याधि‍क आ ओकर दवाइ-औषधि‍क अध्‍ययन करै छथि‍, मुदा रोगीकेँ ओइसँ आकि‍ जेकरा ओइसँ भेँट नै, तेकरा कोन मतलब छै जे अनेरे पेनक्रि‍याज‍क कैंसरक इलाज कथीसँ हएत, से बूझत। ओना बूझब जरूरी छै कि‍ नै छै ई अलग बात भेल। दुनू छै। बूझब ऐ दुआरे अछि‍ जे रोग-वि‍याधि‍क कोनो ठेकान अछि‍, केकरो भऽ सकै छै तँए बूझब जरूरीओ अछि‍, मुदा नहि‍योँ बुझने हानि‍ओ तँ नहि‍येँ अछि। हानि‍ ऐ दुआरे नै अछि‍ जे जँ ओइसँ भेँटे नै हुअए। ओना, जि‍नगी अमरलत्ती जकाँ जहि‍ना बि‍नु जड़ि‍-मुड़ीक होइए तहि‍ना दुनि‍योँ अछि‍। तखनि‍ तँ भेल जे ओतबे अध्‍ययनक ने जरूरति‍ अछि‍ जेतेकक जरूरत जि‍नगी चलैक क्रि‍यामे होइए। अखनि‍ तक जे प्रमि‍लाक जि‍नगी रहल ओ सपाट रहल। सपाट ई जे बि‍आहसँ पहि‍ने माता-पि‍ताक आश्रयमे रहली, आ सासुर बासक दौड़ान सरकारी भवनमे रहली, तँए घर बनबैक ने जरूरति‍ पड़ल आ ने मन बौएलनि‍। मोने बौएला पछाति‍ ने लोक बाड़ी-झाड़ीमे रंग-रंगक साग तोड़ि‍ पेटक आगि‍ दबैए। जँ से नै तँ अनेरे कि‍ए कि‍यो अल्‍लू-परोड़ छोड़ि‍, कि‍-कहाँक साग खाएत। भलहिं पौष्‍टि‍क दृष्‍टि‍ए सागो अपन ओहेन कुबत बनौने हुअए जइमे अल्‍लुओ-परोड़सँ बेसी सुआदो आ शक्‍तीओ देहमे दाबि‍ कऽ रखने हुअए। परसू जखनि‍ प्रमि‍ला सरकारी भवनसँ नि‍कालि‍ देल गेली आ भाड़ाक घरमे एली तखनि‍ मनक अन्‍हरि‍याक एकादशी दि‍न वि‍चार उठलनि‍। अनायास मुहसँ नि‍कललनि‍-
परि‍वार तेना राँइ-वाँइ भऽ गेल जे केतए रहब। भाड़ा घर अपन थोड़े भेल चारि‍ दि‍न चान फेर अन्‍हरि‍या राति‍। मुदा नहि‍योँ भेने की हएत, केतौ तँ रहए पड़त।
आठ बीधाबला कि‍सान जयकान्‍त छला। गामे नै आनो गामक कि‍सान जयकान्‍तकेँ सचरगर कि‍सान मानै छेलनि‍। ओना आठ बीघा जमीनबला गाम छोड़ि‍ दि‍ल्‍ली-कलकत्ता ओगरने छथि‍, मुदा से जयकान्‍तकेँ ने कहि‍यो मनमे उठलनि‍ आ ने ओइ दि‍स तकला। आठ बीघामे एक बीघा गाछी-कलमसँ लऽ कऽ घर-घराड़ीमे बाझल छेलनि‍, बाँकी सात बीघा जोतसीम छेलनि‍। सातो बीघा एकठाम रहने एकेटा बोरिंगसँ काज चलि‍ जाइ छेलनि‍। चौमाससँ लऽ कऽ धनहर धरि‍क खेतक आकार छेलनि‍। जइसँ नगदीसँ लऽ कऽ जीवन-यापनक सभ फसि‍ल उपजबै छला।
अपन घरमे अबि‍ते प्रमि‍लाक वि‍चार जगलनि‍। अपन घर अछि‍ केतए? नैहर तँ ओही दि‍न छूटि‍ गेल जइ दि‍न माए-बाप दान-दछि‍ना दऽ डोलीमे बैसा अरि‍याइत गामक सीमान टपा देलनि‍। सासुरकेँ अपने आगि‍ लगा जरा देलि‍ऐ। भेल ई जे ससुरक अमलदारीमे आठे बीघा जमीनक उपजासँ जयकान्‍त अपन सम्‍पन्न परि‍वार बनौने छला। सम्‍पन्न ई जे स्‍तरक हि‍साबसँ खेनाइ-पीनाइ, लत्ता-कपड़ा, घर तँ स्‍थायी रूपे बनौनै छला जे अस्‍थायी रूपे बेमारीक इलाजो आ बाल-बच्‍चाकेँ पढ़ेबाएबो-लि‍खाएबक सम्‍पन्नता बनौने छला। तीनटा बेटा- गि‍रि‍धर, मुरलीधर आ श्रीधर। जेठ बेटा गि‍रि‍धरकेँ पढ़ब दि‍स बेसी झुकाउ। एक तँ अनुकूल परि‍वार (अनुकूल ई जे परि‍वारकेँ कौलेज धरि‍ पढ़बैक ओकाइत) दोसर अपन लगन। गि‍रि‍धर ग्रेजुएशन कऽ प्रति‍योगि‍ता परीछा पास कए प्रशासनि‍क अफसर बनला। ओना अपना हि‍साबे गि‍रि‍धरकेँ पढ़ल-लि‍खल कन्‍याक संग बि‍आह नै भेल छेलनि‍। मुदा चि‍ट्ठी-पतरी तँ प्रमि‍लाकेँ पढ़ऽ अबि‍ते छेलनि‍। बच्‍चेसँ मुरलीधरक झुकाउ परि‍वारक काज दि‍स बेसी रहने जयकान्‍त अपने संग बेसी काल रखि‍ खेती-पथारीक लूरि‍ सि‍खा देलखि‍न। तेसर श्रीधर। ओना पढ़ै-लि‍खै दि‍स श्रीधरोक झुकाउ बेसी, मुदा दुनि‍याँ-दारीक वि‍षयसँ कम आ भक्‍ति‍-भजनक बेसी तँए गीत-संगीतसँ बेसी सि‍नेह। जेकरा ने जयकान्‍ते आ ने मुरलीधरे अधला बुझै छला। अधला ऐ दुआरे नै बुझै छला जे जँ दरबज्‍जापर दस गोटे बैसि‍ कीर्तन-भजन करए ओ तँ साक्षात् देवालयक धरमशाला भेल।
गि‍रि‍धरकेँ बी.डी.ओ. भेला पछाति‍ प्रमि‍लाक जि‍नगीमे एकाएक समुद्री लहरि‍ जकाँ उछाल आएल। बदलल बदलल जि‍नगी।
सौझुका चाह दुनू परानी प्रमि‍ला-गि‍रि‍धर कुरसीपर बैसि‍ पीबैत अप्‍पन गप-सप्‍प उठौलनि‍। अपन गप-सप्‍पक माने ई जे अपन जि‍नगी अपन परि‍वार। प्रमि‍ला बजली-
गाममे जे अपन हि‍स्‍साक खेत-पथार अछि‍, ओइसँ जे उपजा वाड़ी होइए तइसँ अपना की भेटैए।
पैसा पाबि‍ गि‍रि‍धर खाइ-पीऐ दि‍स ससरि‍ गेल छला। भरि‍ पेट खेला पछाति‍ जहि‍ना अरामक आवश्‍यकता बूझि‍ पड़ैत तहि‍ना ने सुरा संग सुन्‍दरीक सुन्‍दर बोलो। बि‍हुँसैत गि‍रि‍धर बजला-
अहाँक जे वि‍चार हएत सएह ने हमरो हएत। आकि‍ अपनसँ हटल बुझै छी।
बंसी खेलि‍नि‍हार जकाँ तड़ेराक खोंटी बूझि‍ प्रमि‍ला बजली-
ई तँ देखि‍ते छी जे सात गोटेक परि‍वार माझि‍लकेँ आ छ गोटेक परि‍वार छोटकाकेँ छन्‍हि‍। ओही खेत-पथारक उपजासँ ने दुनूक गुजर होइ छन्‍हि‍। अपने एते दरमाहा उठबै छी, महि‍ना जाइत-जाइत केतए चलि‍ जाइए? तखनि‍ तँ ई ने भेल जे अपन जे हि‍स्‍सा अछि‍, से वएह सभ खाइ छथि‍।
जहि‍ना एकि‍क नि‍अम आ त्रैराशि‍क नि‍अम अछि‍ जे एके बातकेँ एकटा घुमा-फि‍रा जोड़ैत आ दोसर सोझे जोड़ैत, तहि‍ना प्रमि‍लाक जोड़ गि‍रि‍धरकेँ बूझि‍ पड़लनि‍। हँूहकारी भरैत बजला-
हँ से ते खाइते छथि‍।
ई उचि‍त भेल?”
‘उचि‍त’ सुनि‍ गि‍रि‍धर थकमकेला। थकमकेला ई जे ओ तँ खानदानी परि‍वारक चास-बास छी, चलैत आएल चलैत रहत। अखनो अपन परि‍वार छी आ आगुओ रहत। मुदा नि‍सारल मन, पत्नीक बातमे हँूहकारी भरलनि‍-
उचि‍त तँ नहि‍येँ भेल।
प्रमि‍ला-
जखनि‍ उचि‍त नै भेल, तखनि‍ उनुचि‍तकेँ अंगेज रखब नीक भेल?”
गि‍रि‍धर-
नै।
बातक धारमे गि‍रि‍धर तँ भँसि‍ गेला मुदा वि‍चार जखनि‍ जगलनि‍ तखनि‍ भाए-भैयारी, कुटुम-परि‍वार, सर-समाज सभ सि‍नेमाक रील जकाँ मनमे चलए लगलनि‍। मुदा मनो तँ दुनू दि‍शामे, वि‍कार रहि‍तोमे आ वि‍कार सहि‍तोमे चलि‍ते अछि‍। पति‍क गंभीरता देखि‍ प्रमि‍लाकेँ मनमे संशय जगलनि‍। संशय ई जगलनि‍ जे हो-ने-हो कहीं अपन गलती कबुल कऽ वि‍चार ने बदलि‍ लथि‍। तँए अवसरकेँ गमाएब पछाति‍ पछताबाकेँ नौत देब हएत। तँए अवसरकेँ ओत्ते आगू ससारि‍ ली, जे पाछू हटब पाछू उकड़ू हेतनि‍। बजली-
आॅफि‍समे छुट्टी लऽ लि‍अ आ गाम जा अपन हि‍स्‍सा बखरा कऽ लि‍अ।
जहि‍ना अधला वृत्ति‍ कमबैत-कमबैत कि‍यो खेतक घास जकाँ फसि‍लकेँ साफ बना लैत तहि‍ना ने नीक वृत्ति‍केँ कमबैत-कमबैत कि‍यो घासेक खेत बना लइए। जहि‍यासँ गि‍रि‍धर नोकरीक मोटा-मोटी दरमाहा आ ऊपरफटकी आमदनी पाबए लगला तहि‍यासँ अपनो आ परि‍वारोक खर्चमे बढ़ोत्तरी हुअ लगलनि‍। दबसँ नीक दि‍स बढए लगला। मनो तँ मने छी, धारक पानि‍ जकाँ केतौ पेटे-पेट चलैत तँ केतौ महार तोड़ि‍ दोसर मुँह बना शकले बदलि‍ लैत तँ केतौ पछि‍ला आमदनी (धारक पछि‍ला पानि‍क बेग जकाँ जे बरखो आ बरफोक रहैत) पर उछलि‍ धारे जकाँ खेतो-पथारकेँ बना अपन शकले छि‍पा लैत। मुदा तइसँ फराक गि‍रि‍धरक मन चललनि‍। मन चललनि‍ ई जे ‘साँपो मरि‍ जाए आ लाठीओ ने टुटए।’ परि‍वारक भैयारी अपन ने भेल, पत्नीक की भेलनि‍। मुदा तँए कि‍ ओ हि‍स्‍सेदारि‍नी नै छथि‍, सेहो तँ नहि‍येँ कहल जा सकैए। काजक गर देखि‍ गि‍रि‍धर बजला-
अखनि‍ चुनावक समए आबि‍ गेल अछि‍। तीनि‍ए मास रहलैए। शासनक रूप-रेखा बदैल गेल अछि‍, एको दि‍न के कहए जे एको क्षण छुट्टी भेटब कठि‍न भऽ गेल अछि‍। तँए अहीं जा कऽ अपन भैयारी हि‍स्‍सा बाँटि‍ लि‍अ।
अवसर पाबि‍ प्रमि‍ला मने-मन खुशी भेली। खुशीओ केना ने होइतथि‍, राहड़ि‍क दालि‍ आ दि‍याद जेते गलै छै तेते ने लोककेँ नीक लगै छै। लोको तँ लोके ने जे लगले गदहा बनि‍ जात लाधि‍ लइए तँ लगले हँस बनि‍ दूध-पानि‍ बि‍लगा दइए।
पति‍क बात सुनि‍ प्रमि‍ला मानि‍ गेली। शनि‍केँ पछि‍म मुहेँक यात्रा नीक होइ छै तँए परसू गाम जेबाक वि‍चार पति‍सँ मना लेलनि‍। ओना गि‍रि‍धरक मन गामक सम्‍पति‍सँ हटि‍ आॅफि‍सक काज दि‍स बढ़ि‍ गेलनि‍, मुदा प्रमि‍लाकेँ जेना देवस्‍थानक डोर डोरि‍या लैत तहि‍ना भैयारीक सम्‍पति‍ डोरि‍या लेलकनि‍। मनमे रंग-बि‍रंगक वि‍चारक तरंग तरंगि‍त हुअ लगलनि‍। सभ बेचि‍-बि‍कि‍न बैंकमे जका कऽ लेब, सुइदि‍क नीक आमदनी हएत। जँ से नै तँ खेतक उपजासँ अन्नक बेसाहे खतम हएत। तैयो भेल। ओना बेसाहमे पाइक खर्च नहि‍येँ छेलनि‍, डीलरे सभ उपहार पढ़बै छेलनि‍।
तेसर दि‍न, शनि‍ दि‍न, प्रमि‍ला सासुर पहुँचली। जेठ दि‍यादि‍नी होइक नाते परि‍वारक पूज्‍य छेलीहे। दुनू भाँइ मुरलीधर आ श्रीधर दि‍अरे आ दुनू छोटकी दि‍यादि‍नी। परि‍वारक सीढ़ीओ तँ रूआबी होइते अछि‍। तहूमे आब माता-पि‍ता परोछे भऽ गेलनि‍। खेला-पीला पछाति‍ प्रमि‍ला दुनू दि‍अरकेँ कहलखि‍न-
हम केतए एलौं, से अखनि‍ धरि‍ कि‍यो पुछलौं?”
संगति‍या श्रीधर बजैमे फरकोर रहबे करथि‍। बजला-
ई थि‍क मि‍थि‍ला रीत, ई थि‍क मि‍थि‍ला गीत, सुनि‍यौ यौ मीत, आगूसँ पुछैक नै छी रीत।
श्रीधरक लयात्‍मक बोल जेना प्रमि‍लाकेँ छूबि‍ देलकनि‍। तरेगन जकाँ आँखि‍ तरंगलनि‍। मुदा दबने रहली। बजली-
अखनि‍ कोनो बि‍आह दान आकि‍ मूड़न नै छी जे गीत-नाद हएत। अपन हि‍स्‍सा बाँटए आएल छी।
‘अपन हि‍स्‍सा’ सुनि‍ श्रीधर बौआ गेला। बौआ ई गेला जे मनुखकेँ तँ अपन-अपन हि‍स्‍सा अपन-अपन गुण होइ छै ओ केना बँटाएत। केकरो देल जा सकैए। मुदा मुरलीधर सम्‍पति‍क बात बुझलनि‍। अदौसँ परि‍वारमे बँटबारा होइत आएल अछि‍, सुहरदे मने कि‍ए ने बाँटि‍ देबनि‍। कि‍ए अनकर देखौंस करब जे एक हाथ- आध हाथ खेत ले कपर-फोरौबलि‍ करब। बजला-
परि‍वारमे आठ बीगहा जमीन अछि‍। दू बीगहा तेरह कट्ठा छ धूर दू पौआ, दू कनमा दस कनइ हि‍स्‍सा भेल, कागतपर नक्‍शा  बना कऽ लऽ लि‍अ। काेनो मन-मलान नै अछि‍।
अखनि‍ धरि‍ मुरलीधरक मनमे यएह रहनि‍ जे गि‍रि‍धर भैया थोड़े खेत-पथारक आड़ि‍पर औता, तखनि‍ तँ कागजी बँटबारा भेल रहत। मुदा से भेलनि‍ नै। प्रमि‍ला अपन सभ कि‍छु अलग देखए चाहै छेली। बजली-
हमर सभ कि‍छु अलग करि‍ दि‍अ।
घरसँ लऽ कऽ वाड़ी-झाड़ी खेत-पथार सभ कि‍छु प्रमि‍ला अपन खँति‍या लेली। खँतेला पछाति‍ छोटकी दि‍यादि‍नी कहलकनि‍-
दीदी, सब कि‍छु तँ बँटाइए गेल। आन जे आबि‍ घराड़ीपर भाँटा रोपत आ अनेरो साँझ-भोर आबि‍ जे गरि‍औत से केहेन हएत। मनहुण्‍डे सब खेतक उपजा साले-साल दइत रहबनि‍, अनका नै देथुन।
जेना कोनो लाभ पौने लोककेँ खुशीए टा नै उत्‍साहो उमकै छै तहि‍ना प्रमि‍ला उमकैत बजली-
बाँटल भाए पड़ोसि‍या दाखि‍ल। अपना हि‍स्‍साक घरमे जेकरा मन फूड़त तेकरा बसाएब, तइले अहाँकेँ कि‍ए छाती फटैए।
जेठ दि‍यादि‍नी, मातृ तुल्‍य प्रमि‍लाक बात सुनि‍ सबरी आँखि‍ नि‍च्‍चाँ  कऽ लेलनि‍। मन कहलकनि‍, ‘एहेन लोकक मुँह देखब पाप छी।’
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१० अगस्‍त २०१४