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Monday, February 15, 2016

जाति

राम विलास साहु

जाति


आसिन मासक चारिम सप्‍ताहक समए अछि। बर्खाक पानि आ बाढ़िक पानि सेहो थीर भऽ गेल अछि। मुदा चर-चाँचरमे पानि भरले अछि। जइमे खेतिहर सभ पटुआ, सन्नइ, चन्नी, चन्ना काटि-झाड़ि गोड़ैत अछि। पानि गनहा रहल अछि।
दू गामक बीच अछि तँए चर दूर तक पसरल अछि। बहुत पहिनहिसँ दुनू गामक लोकक सेवा सेहो करैए। बुढ़-पुरानक कहब छैन जे पहिने कोसी अही चर देने बोहै छल। पछाइत मुँह भरना भेने दोसर दिस धार घूमि गेल। बरखा आ बाढ़िक समए उनटे कोसीक पानि आबि चरकेँ उपेछाल करि दइए। जखन बाढ़िक पानि घटैए तखन चरोक पानि स्‍वत: घटि जाइए। चरक पानि करिया समाढ़सँ करियाएल, तइमे भैँटक फूल कोसी धरि फुला शोभा बढ़ेने रहैए। तैबीच सिल्‍ली, गागन, लालशर, पनिकौआ इत्‍यादि अनेको रंगक चिड़ै-चुनमुनीक क्रीड़ा स्‍थलक संग शरण स्‍थल सेहो बनलए।
एक-दोसर गामक लोक जाइ-अबैले केतए-केतए समाढ़ हटा-हटा बीचमे सिरौर बना पानिटपैले रस्‍ता बनौने अछि। पानि बेसी रहने नाहक साधन सभ अपन-अपन रखने। जे नै रखने अछि ओ भरि डाँड़ भरि जाँघ पानि टपि ऐ-पारसँ ओइ-पार करैत अछि। बेवस्‍थो कोसी क्षेत्र-ले बेमुखे अछि। ऐ क्षेत्रक नेता सभ क्षेत्रक विकास तँ कमे सन मुदा अपन विकास कऽ गामसँ दूर शहरमे बड़का फ्लैट बना रहै छैथ। तँ गाम बाढ़ि-पानिमे डुमैले किए औता। ई तँ गामबला बुझत जे गाम केकर छी। डीहबासूकेँ आकि बहरबैयाकेँ। नेतासभ तँ पाँच बर्खक पछाइत चुनावी महाकुम्‍भमे मात्र नहाइले अबै छैथ। सभ पुण्‍यकेँ मोटरी बान्‍हि नेने चलि जाइ छैथ।
चुनावक समए आएल। नेता सबहक उजैहिया गामे-गाम आबि गेल। क्षेत्रक वोँट बटोरै खातिर ओही कोसी कोसीक चर टपि अगिला गाम जेबाक छैन। सोचलैन पएरे टपने लोक संघर्षशील नेता बुझत। जइसँ अधिक भोँट हएत।
नेता आ नेताक पीठलगुआ गामक कार्यकर्ता संगे सभ कियो जाँघर भरि पानि टपि पार हुअ लगला। तही क्रममे नेताजीकेँ एकटा नमहर पलैहिया जोंक धऽ लेलकैन। पार होइते नेताजीक जाँघसँ छरछर खून निकलए लगलैन। छरछर खून बहैत देख नेताजी छटपटा उठला। संगी सभ निहारि देखलक तँ देखैए नम्‍हरगर जोंककेँ, जे खून पीब मोटागेल अछि।
नेताजी जीबठ बान्‍हि जोंककेँ हाथसँ पकैड़ खींच-तीर कऽ छोड़ौलैन। एक हाथसँ छरछराइत खूनक दाढ़केँ दबने आ दोसर हाथसँ आ दोसर हाथसँ एकटा संगीक लाठीक हूरसँ जोंककेँ थोकैच-थोकैच मारए लगला।
जोंक तँ कठजीब होइते अछि। लाठीक हूरसँ नै मरैबला। तमसाएल नेताजीक मुहसँ निकलैन-
तोरा आर कियो ने भेटलौं जे हमरे खून पीबैले एलेँ। तोरा खनू बोकराए मारि देबौ।
छटपटाइत जोंक बाजल-
हमहूँ तँ अहींक जाति छी, जाति जातिये लग ने जाएत। अहाँ जे एहेन निष्‍ठूर भऽ हमरा मरै छी से जातियोपर ने कनियोँ दया-धरम अछि। अखन हम कोनो अपराधो तँ नहियेँ केलौं अछि। ई तँ जातिक सोभाव छी।
नेताजी डाँटैत बजला-
तूँ जलकीट, असरधे पानिमे रहैबला आ हम श्रेष्‍ठ मनुख फ्लैटमे रहनिहार, तखन तूँ केना हमर जाति भऽ सकै छेँ?”
जोंक कुहरैत बाजल-
जहिना अहाँ जनताक खून पीबै छी तहिना ने हमहूँ खूने पीलौं अछि। अहूँ खूनपीबा आ हमहूँ खूनपीबा। तखन दुनू गोरे जातिये ने भेलौं। जातिक सर्टिफिकेटक चालि-चलनसँ बढ़ि कऽ आरो कोनो नमहर प्रमाण होइ छै जे देब। एक तँ पहिनहिसँ अहाँ सभ हमरापर एतेक अतियाचार केलौं जे हम भागि पड़ा कऽ पानिमे शरण नेने छी...।
नेताजी आँखि लाल-पीअर करैत बजला-
तूँ अपन प्राण बँचबैले ई गुमला हमरा सुनबै छेँ। तोरा बिनु मारनेहम नै छोड़बै।
बाजि नेताजी अनधुन लाठी जोंकक देहपर बरसाबए लगला।
अधमरू भेल जोंक बाजल-
अदना सन गलतीपर हमरा सन अब्‍बल जीवकेँ जानसँ मारै छी आ अहाँ जे लाखक-लाख जनताक खून श्रेष्‍ठ मनुख भऽ पीबितो एलौं आ पीबितो छी से नीक लगैए।
जोंकक ई बात नेताजीकेँ आरो तरङा देलकैन। तखने जुमलासँ एक गोरे कहलकैन-
नेताजी, चुन लगबैक आदेश देल जाए, अपने खून बोकरए लगत।
चुनक नाओं सुनिते जोंक अपन प्राणक भीख मंगैत बाजल-
जेकर आधार बना अहाँ अपन जीवनक यात्रा करै छी यएह तँ हमहूँ छी। दया करू..! जातिपर दया करू..!”

बाबाक लोटा कथाकार- ललन कुमार कामत

ललन कुमार कामतजीक एकटा लघु कथा-
बाबाक लोटा
जेठक दुपहरियाक समए, टहटहाएत रौद, उपर ताकैते ऑंखि चोन्‍हराइत रहिन। कछुआ बाबा दलानपर काठक खुर्शिपर बैसल छथिन्‍ह आ गामक उफॉंइट नबतुरिया सभकेँ बिखनि-बिखनिक गारि पैर रहल छ‍िथन्‍ह। गामक दु-चारिटा छौड़ोसभ मारिते बदमाश छेलैन, कछुआबाबाकेँ देखैते इत्‍यादि तरहक अमर्यादित बात बाइज ‘झामलाल-बुड़बा घाम किए चुबैछ?’, ‘बाबा झल कटेलहक?’, ‘बाबा ढे़का खसलऽ, ढेका खोंसऽ’, ‘चेशमामे भुड़ छै।’ इत्‍यादि तरहक बातसँ कछुआबाबाकेँ पिनकाबैत रहैए आ माजा लुटैत रहैए। मजाकक पात्र बनि, कछुआेबाबा, अकट-बकट बाजैत रहै छथिन्‍ह।
कछुआबाबाक नअ बर्खक पोता, बिरखा सेहो वएह संगतक रिझल-खिझल शैतानक जरि रहिन, बाबाक फुलही लोटामे आगि भरिकेँ अंगनाक ओसाि‍रपर बैस स्‍कूलक पोसाकमे आइरन करि रहल छल, ताहि समए कछुआबाबाकेँ जोरसँ मैदान लागि गेल। कछुआबाबाक ऑंख कमजोर रहिन, अपन झलफलाइत नजैरसँ लोटा तकैत दुआरि परसँ ऑंगन एलनि, चारू दिशा नजरि घुमेलखिन मुदा कतौ लोटापर नजरि नै पड़ल। कछुआबाबाक आदैत छेलनि अपन जरूरीक चीज-बीत अपने संग राखैक, मुदा बिरखाक शैतानीसँ अवगत छेलैन, हिनका बुझना गेल जे बिरखे हुनक चीत-बीतमे हाथ लगाबैत अछि। घुरि-फिरकेँ बाबाक नजरि बिरखापर अटकल, जे कछुआबाबाक लोटामे आगि भरिकेँ कपराक आइरन करैत रहिन। बाबा चिकैरकेँ पुछलखिन-
“के छी बिरखाऽऽ? एऽइह बाजे किए नै छै, छिनरीक सॉंए, मँुहक मालगुजारी लागैछौ?”
बिरखा उचैककेँ बाजल-
“की भेलऽ हौ? देखै नै छहक, काम करैछी? सदिखन बड़-बड़, चड़-चड़ करैत रहैत अछि।”
कछुआबाबा-
“ऊँऽ हँ! बोलीमे तेना एकोरति लैशे नै अछि। पुछै छियौ हमर लोटा देखलीहीं केतौ?”
बिरखा लोटा परसँ हाथ ढ़ील्‍ला करैत बाजल-
“कोए तोहर लोटा खेने नै जाइ छऽ। रूकि जा कनीए कला भऽ गेलै।”
खिसियाएल कछुआबाबा छड़ी उपर तानि जोड़सँ बाजलखिन-
“देखै छिही ठेंगा, ठॉंएसिन माथपर बजारि देबो? सब खेल-बेल तोहर बाहर करि देबो। हमरा पेखाना जोड़सँ लागल अछि आ तूँ मजाक करै छी?”
बिरखाक पोसाकक आइरन पुरा नै भेल रहिन मुदा इहो बुझैत रहिन जे आब लोटा नै देब तँ मारि खाए परत। बिरखा अपन अंगाक आइरन केनाइ छाेरि, भरल लोटा आगि बाबाक हाथमे धराए देलक।
“लाए, तोहर प्राण किए छुटल जाए छऽ?”
एक दिश जेठक तपैत गर्मी, तैपरसँ आगिसँ भरल लोटा, बाबाक हाथमे परैते सटसीन बैस गेल। कछुआबाबा जोरसँ हाथ झमारैत लोटा फेकलखिन, आ धुँसि सीन जमीनपर खसल, छरपटाए लागल। कछुआबाबाक चेशमा हाइ पाबरक रहिन सेहो ऑंखिसँ फेका गेल आ दू टुकरी भऽ गेल।
पाकल हाथक लहैर आ तमशएल मन, कछुआबाबा छड़ी उठा दौरल बारैले, मुदा बिरखा माथपर पैर लेने नऽ दू एगारह भऽ गेल। कछुआबाबा घोलाइत रहल। कनीए समेक पछाति बाबाक मन हलुक भेल, तब मैदान कैर एलनि, हाथ-मुँह धोए, दलानक नींचा दरबज्‍जापर छहारिमे बैसल रहिन। तखैने घुटरा, मनुआ आ मखना आएल आ कछुआबाबाक मजाक उड़ाबे लागल...
घुटरा- “चेश्‍मा कि भेलह बाबा हौ?”
कछुआबाबा-
“चेश्‍माकेँ खेलकै हँ बिरखा, ई छौरा हमरा जिए नै देत! सभ पराणी मारैमे लागल अछि।”
मनुआ- “बाबा, धोतीमे कि लागल छऽ हौ? खोखना बाजैत रहै, जे  कछुआबाबा कपड़े-बस्‍त्रमे पैखाना कऽ देलकै!”
ई बात सुनैते मातैर कछुआबाबा तमताए उठल आ माइए-बहिने उकटे लागल। इहो चारूगाोटे इएह चाहैत रहिन जे बुढबा गैर दिए आ सभगोटे माजा लुटी। तखैने मखनाकेँ एकटा अटपटाएल बात फुराएल आ कछुआबाबाक पछारि जाएकेँ जोड़सँ बाजल-
“भागऽ बाबा भागऽ, पाछामे नेंगड़ा सड़हा आबि रहल छ!”
घुटरा, मनुआ सेहो हँ मे हँ मिलाबैत बाइज उठल-
“हँ हौ बाबा भागऽ, फैर हेऽ हुरर्रऽ हुरर्रऽ हे!”
कछुआबाबाकेँ बुझना गेल साइत ठीके सढहा आइब गेल, हाथमे लोटा उठेलक आ भॉंजे लागल। कछुआबाबा- “तुहेसभ सढहाकेँ रेबाने एलँ कतौ सँ। फैर हेऽ भागले कि नै? हुल्‍लेऽ... हुल्‍लेऽ...”
मखना कछुआबाबाक पछा जाएकेँ जोड़सँ चिकैर बाजल-
“बाबा तोरे पाछारिमे छऽ हौ! भागऽ नऽ!”
कछुआबाबा पछा उलटिकेँ फुलहीक लोटा जोड़सँ फेकलक... लोटा सिधा मखनाक मँुहपर जाए थप्‍पसिन लागल, धुस्‍सऽ सिन मखना जमीनपर खसल आ तिलमिलाए लागल। मखनाकेँ ऑंखिक आगु अन्‍हार भऽ गेल आ अधरातिक तारा देखाए लागल। गामक आरो किछु लोकसभ जमा भेल अा बाजे लागल-

“नीके भेलौ तोरा सभक संग। जे किओ बुढ-पुरानसँ मसखड़ी करत तकरा मजाकमे एहने सुजाक हेबक चाही।”

अवाक

राजदेव मण्‍डलक एकटा लघु कथा-

अवाक


अन्‍हरिया राति। लगै छेलै जेना आसमान अन्‍हार उगैल रहल होइ। ऊपरसँ हाँइ-हाँइ बहैत हवा गाछ-बिरिछकेँ झिकझोरि रहल छेलै। तैपर कखनो-काल टिपटिपाइत पानिक बून...।
कखैन समए ठीक भऽ जेतै आ कखैन अधला तेकरा कोन ठेकान। ऐपर केकर वश चलि सकै छै? ओ तँ...।
जितू ऊपर मुहेँ तकलक। लगलै मेघ उनटल आबि रहल अछि। देखते ओकरा टाँगमे पाँखि लगि गेलइ।
एहेन खराप समए आ दू कोसक रस्‍ता! बान्‍ह-सड़क बनिते छेलै तँए ओइ गाम बस-ट्रक तँ जाइते ने छल। एहेन बिगड़ल समैमे रिक्‍शा, टेम्‍पू जेबे नै करतै। पैदले जाए पड़त।
केकर कपार खराप हेतै जे एहेन समैमे निकलत। जितू निकलल छल ठीके समैपर। ओकरा की पता छेलै जे बाटमे बस भँगैठ जेतै आ बसक डरेबरसँ जातरी सभकेँ झगड़ा-फसाद भऽ जेतै। तइ कारण बसकेँ दू घण्‍टा बेमतलब ठाढ़ केने रहतै। आ जातरी सभकेँ एते समस्‍या हेतइ। तइसँ बसबलाकेँ मतलबे की।
सभ तँ अपने सुआरथमे डुबकी मारैत अछि। सुआरथ पूर भेल तँ वाह नइ तँ आह। अनकासँ केकरो की मतलब।
ओ सोचलक- मुदा हम तँ स्‍वार्थमे नै छी। बेमार सारि बारम्‍बार फोन कऽ रहल छेली जे-
हम जीअब की मरब तेकर कोनो ठेकान नहि। एक बेर भेँट कऽ जाउ।
ओइठाम केना नै जाएब, जैठाम जेनाइ कर्तव्‍य अछि।
केतबो लिखब लेख, परेमक रूप अनेक।
भेँट होएत। ओइ भेँट करबामे नै जानि केतेक सुख छै। केतेक आनन्‍द छै। सूचना मिललाक उपरान्‍त जितूकेँ कछमछी लगलै से अखनो धरि लगलै छेलै।
ओकरा यादि पड़लै। अँगनासँ निकलैत-काल पत्नी टोकने रहइ।
केतए जाइ छिऐ। कोनो ओइठाम लोक नै छै।
पत्नी जेना तमसाएल रहइ।
शंकामे औनाइत मन! तामसे फड़फड़ाइत! जितू मिलबैत बाजल-
कोनो आनठाम जाइ छिऐ जे एना तमसाएल छी। अहींक गाम तँ जाइ छी।
हँसैत जितू निकैल गेल छेलै।
सड़कपर ऐबते दोस टोकि देने रहइ-
हे यौ, सासुर अछि पछिम आ जाइ छिऐ उत्तर मुहेँ।
कनी बैंकसँ टको-पैसा लेबाक अछि। अखैन हम नै रूकब।
कहैत आगू बढ़ि गेल रहइ।
जितूकेँ  मनमे  आएल।  जतरा  पहर टोकि देने रहए तँए शायद बाटमे
एना बाधा भऽ रहल अछि।
पुन: सारिक संगे बिताएल समए ओकरा स्‍मरण हुअ लगलै। हँसी-खेल, फगुआक रंग-अबीर, आमक मास, मधुमास। ओकर रूप, गुण, बोली आ मुस्‍की मारैत मुख...।
किछुकाल लेल जेना ओ स्‍वर्गक सागरमे डुमकी मारए लगल। सुखकेँ यादि केलासँ लोक किछु पलक लेल पुन: सुखी भऽ जाइत अछि भोगर सुखक नव रूप!
सुनमसान बाट आ बिकट समए। जेना सभ किछु बिला गेल छेलै।
एकाएक मेघक गर्जनासँ जितूकेँ धियान भंग भऽ गेलइ। जेना फेर चारू-भरसँ अन्‍हार घेर लेलकै। एहने समैमे घटल घटनाक सबहक चित्र आगूमे आबए लगलै।
ओकरा मन पड़लै। एकबेर सासुरेमे सारक दोस कहने रहए-
हे यौ, इलाकामे जँ कुसमए केतौ फँसि जाएब तँ हमर नाम सुमैर लेब।
सारक मुहसँ दोसक बड़ाइ खूबे सुनने रहए।
जितूकेँ बुझेलै जेना कातमे किछो छेलै। मुदा ओ अन्‍हारमे किछो नहि देख रहल छल। पएर थरथराए लगलै। कथी छेलै- भूत-प्रेत आकि चोर-डकैत। पता नै ओतए पहुँच सकब आकि बाटेमे प्राण बिला जाएत...।
फेर भट्ट दऽ किछो खसल। डेराइते ओम्‍हर तकलक। देखते जेना मनकेँ भरोस भऽ गेलइ। कियो आगूमे बाट धेने धड़फड़ाइत जा रहल छेलै। जहिना लटछुटु माल दोसर माल-जालकेँ देखते स्‍थिर भऽ जाइत अछि तहिना जितूकेँ सन्‍तोख भेलै। शंका सभ मेटाए लगलै।
डेग बढ़ौलक जे संगे चलब, लगमे जाइते ओ उनैट कऽ कर्कश अवाजमे पुछलक-
रेऽऽ ठाढ़ रह! केतऽ रहै छी?”
तखने बिजली चमकल। ओही इजोतमे जितू ओकर भयंकर रूप देखलक। भागल भय जेना फेरसँ देहमे समा गेल। डरे देह थराराए लगल। पेटक हवा निकास लेल गोंगिया उठल मुदा ओहो डरसँअन्‍दरेमे बिला गेल। अनायासे मुहसँ निकलल-
हौ, अही अगिला गाम हमर सासुर अछि। हमहूँ तोरा चिन्‍हते छिअ आ तहूँ हमरा चिन्‍हते हेबहक। एना किए करै छहक।
आ रे तोरी-के, कोनए गेलै रौ, चेला सब, ई तँ सभकेँ चिन्‍हते छौ। जुलुम भेलौ। सभटा भेद खोलि देतौ। सभ किछो छीन-ले आ सारकेँ साफ कऽ दही।
हौ बाप, हम केकरो नहि चिन्‍हैत छी।
चुप...।
तड़ाक-तड़ाक मुँहपर चमेटा खसए लगल।लगलै जेना बजर गिरैत अछि। जितू धड़फड़ा कऽ भूमिपर खसि पड़ल।
देखै छी पाछूमे इजोत1 पुलिस आबि रहल छौ। सभ किछो छीन-ले आ गरदैन काटि दही। हम आगू निकलै छियो।
एकटा चेला तरूआरि लेने जितू दिश बढ़ल आर सभ तेजीसँ आगाँ बढ़ि गेल। चेला जितू लग आबि सभ जेबीक तलाशी लेलक आ उठैत बाजल-
यौ गुरू ई तँ थप्‍परेसँ मरि गेलै। मारबै की। भागू जल्‍दी, पुलिसक इजोत लगीच आबि गेल।
सभ पड़ा गेल। जितू चिन्‍हल अवाज सुनि  कुहरैत उठल। मन घृणासँ भरि गेलइ। अचरजमे डुमल स्‍वर निकललै-
धनक लेल लोक एतेक नीचाँ गिर सकैत अछि। केकरा कहबै के पतिएतै, जेकरे कहबै सएह लतिएतै।
जेना लगलै केतौ किछु नहि, कोनो सम्‍बन्‍ध नहि। मनुख केहेन आ जानवर केहेन। के नीक?
अनायासे ओकर हाथ ओहइ जेबी दिस गेलै जइमे आठ हजार टका रखने रहए। सभ टका-पैसा सुरक्षिते रहइ। ओ अवाक् भऽ गेल।
सोचलक- केतौ आ केकरो लग इमान रहि सकैत अछि। बुढ़-पुराणक बात मोन पड़लै-
केतबो काटबहक जड़ि
इमानक सोर पताल धरि।

मोहरा

मोहरा


मास दिनक पछाइत पता लगल जे कुरसोवालीक सराधो भऽ गेल। गामक ओहन काज जे एक दिनक आकि एक क्षणा नइ छी, जे चुपचाप भऽ जाएत। सराधक पाछू क्रिया-कर्मक भोज-भातक संग नह-केश अछि तइसँ पहिने तेरातिक भोजो आ छौरझँपी होइए, तहूसँ पहिने लहाश जरौल जाइए। एते नमगर-चौड़गर काज आ बुझबो ने केलौं..!
फेर अपनेपर नजैर पड़ल, नजैर पड़िते जखन मास दिनकेँ गुनलौं तँ केतौ खोंच-खरोंच नइ बूझि पड़ल। माने जहिना सभ-दिना जिनगी अछि तहिना ऐछे, तखन किए ने बुझलौं। आइ जँ केतौ मास-दिनक तीर्थ-वर्तमे गेल रहितौं आकि कोनो महानगरे घुमैले गेल रहितौं, सेहो तँ नहियेँ केतौ गेलौं हेन। मुदा मनमे ईहो जिज्ञासा तँ जगले रहए जे जे कुरसोवाली एक समए गामक रंगमंचपर मुख्‍य नचनिहारि छलि, तेकर सराध केहेन भेल?
फेर भेल जे मास दिनक पुरान गप छी तखन जँ केकरोसँ पुछबे करबैन जे कुरसोवालीक सराध भऽ गेलैन तँ ओ मुँह दुसि कहबे करत कि ने जे तूँ गाममे नइ छेलह जे देखतहक आकि सुनितहक जे पहिने सराध भेल आकि मुइल, एतबो ने बुझल छह।
कोनो गरे ने देखिऐ जे की करब। मुदा मनमे बुझैक जिज्ञासा तँ रहबे करए।
विचारलौं जे रस्‍ते-रस्‍ते दछिनवरिया बाधक खेत देखैक बहन्ने जाएब, ओही बीचमे कुरसोवालीक घर पड़ै छै, जँ कोनो सुराग बूझि पड़त तँ गप खोड़ि देबै, माने चर्चा चालि देबइ। जखने चर्चा उठत कि जहिना धिया-पुता चौमास खेतक अल्‍लू उखड़लाहा वाड़ीकेँ कियो खुरपीसँ तँ कियो ठेंठिया कोदारिसँ चलिया-चलिया किर्ड़ी तक बीछ लइए तहिना सभ बीछा जाएत...। 
यएह सोचि दछिन-मुहेँ विदा भेलौं।
संयोज नीक बैसल। कुरसोवालीक बेटा- सिंहेसरा उत्तरे-मुहेँ अबैत रहए। खुटियाएल केशो देखलिऐ आ रंग झड़ल धोतियो बूझि पड़ल। बूझि एना पड़ल जे नवका धोतीक पाइढ़ ओहिना चक-चक करैत जेहेन नव रंगलमे चक-चकाइत रहैए। लगमे अबिते मनमे भेल माइयक सराधक विषयमे सिंहेसरासँ पुछिऐ।
मुदा फेर भेल जे जँ नइ मरल होइ तखन तँ अनेरे ई कहि गरियौत जे हमरा माएकेँ जीवितेमे सराधक बात पुछैए। भाय! सरधा ने जीवितमे होइ छै मुदा सराध तँ मुइला पछातिये होइ छै। अन्‍तर एतबे ने अछि जे परक अधिकार धऽ घर चैल जाइए। आगूमे देखते सिंहेसरे बाजल–
काका, गोड़ लगै छी, माए-बापक करजासँ फारकती भेल।
माए-बापक करजा सुनि मनमे ठहकल जे निसचित माइक सराध कऽ निचेन भेल अछि। गपक पन्ना भेटल। पन्ना पकैड़ पुछलिऐ–
नीक जकाँ कर्जासँ फारकती पौलह किने?”
नीक जकाँ फारकती सुनि सिंहेसराक जेना छाती दहैल कऽ कुड़बुड़ा उठलै। बाजल-
कक्का, जिनगी भरि जेकरा सेवलक ओहो देह चोरा लेलक।
सिंहेसराक बात भाँजेपर ने चढ़ल जे की कहलक। पुछलिऐ–
से की?”
बाजल–
कक्का, तोरा सभकेँ ते बुझले छह जे माइयो आ बाबूओ दुनू परानी जिनगी भरि खुशीलाल कक्का ऐठाम खटल, जे कमाएल-खटाएल से खेलक-पीलक, हमरो पोसलक। हमरा बिआहो कऽ देलक। गाममे केते कमाइये होइ छै जे औझका लोक जकाँ गुजर कैरतौं तँए पंजाब चैल गेलौं। एम्‍हर बाबूओ मरि गेल। पनरहे दिन गेना भेल रहए, भड़ो जोकर पाइ नइ कमेने रहौं जे अबितौं, नइ एलौं। माइये आगियो देलकै आ सराधो केलकै।
सह दैत कहलिऐ–
जहिना बेटाकेँ अधिकार अछि तहिना ने माइयोकेँ अछि, नीके भेलह।
बाजल-
नीके की हएत कक्का, तखन तँ गरीब लोकक माए-बापक सराध भगवाने भरोसे होइए, सएह भेल।
झमान भऽ सिहरैत सिंहेसराक मन देख कहलिऐ-
पार-घाट तँ लगिये गेलह किने?”
झुझुआइत सिंहेसरा बाजल-
पार की लागत तखन तँ अपन हारल लोक बाजिये कऽ की करत।
जे बात बुझैक जिज्ञासा छल ओ तर पड़ि गेल। ऊपर चैल आएल पिताक सराध। माइक सराध दिस बातकेँ बढ़बैत पुछलिऐ-
माइयक कहह?”
माए सुनि सिंहेसरा विचलित होइत बाजल-
कक्का, बाउकेँ मरना थोड़बे दिनक पाछू माए दुखित पड़ि गेल। अपने गामोमे ने रही, खुशीलाल कक्का, एको दिन खोजो-पुछाइर ने केलखिन आ एक पाइक गोटीकेँ के कहए। भनसिया समाद देलक। जे पाइ कमेने रही से पठा देलिऐ, अपने जँ चैल ऐबतौं तँ ओहो कमाइ ने होइत।
बिच्‍चेमे कहलिऐ-
से ते नीके केलह।
नीक सुनि सिंहेसराक बोल ने आगू उठै आ ने पाछू होइ। हेबो केना करैत, कोनो कि समाजमे छपित बात अछि जे लोकक किरदानी भेड़िया-धसान जकाँ छै। अधलोकेँ तेते नीक कहत जे राड़ीक फूल जकाँ अपने हवामे उड़ैत अकास चढ़ि जाइए, आ अकास चढ़ल काजकेँ धकियबैत-धकियबैत खेत-कातक रस्‍ता जकाँ बहुपेड़ियाकेँ एकपेड़िया बनबैत नाओं मेटा खेते बना लइए आ जखन खोज-खबैर होइ छै ते कहैए जे सर्वेक खतियानमे ने खत्ते-खेसरा चढ़ल अछि आ ने नक्‍शामे नक्‍शे बनल अछि। मुदा सिंहेसरा से नइ केलक, अपन इमानकेँ इमनदारीसँ अङैजैत बाजल-
कक्का, तोरा लग मुँह उठबैत लाज होइए, मुदा बाप-पित्‍ती तँ तोहीं सभ ने भेलह, बेटा-भातीज जँ लगतियो करत तँ तोहीं सभ ने तेकर निमरजना करबहक।
सिंहेसराक बात सुनि जेना हृदयमे धक्का लगल। धक्को केना ने लगैत, एकटा बाल-बोध ऐसँ बेसी कहिये की सकैए। पीठ उघारि आगूमे देत जे कक्का लिअ गलती केलौं एक सए जूता मारू। मनुख विवेकी छी, लाज ओकर आभूषण छिऐ, जे अंगीकार केला पछाइत लोककेँ रहिये की जाइ छै। मनमे जेना उड़ी-बीड़ी जकाँ लगल। मुदा गुण भेल जे सिंहेसरे बाजल-
कक्का, जे बुढ़ियाक धारलिऐ, से ते करबे केलिऐ।
मुदा की धारलिऐ, की केलिऐ की नइ केलिऐ, की करक चाही, की नइ करक चाही..? एक संग अनेको प्रश्‍न मनमे नाचि उठल। नचैत मन सिंहेसराक पिता- ढोरबापर पड़ल। सुधंग लोक खुशीलालक एकटा महींसक सेवाक सोल्‍होअना भार ढोरबापर, यएह जिनगी यएह दुनियाँ। कुरसो बिआह भेल रहैन। कुरसोक जइ टोलमे बिआह भेल, ओ अगुआएल लोकक टोल, ओइमे एकघरा। पत्नीक (माने सिंहेसराक माए) चिष्‍टो-चार आ बजै-भुकैक ढंग सेहो अगुआएल। सुधंग पति पेब कुरसोवाली एक-छत्र परिवारक गारजन बनि गेलि।
सत्तैर-अस्‍सीक दशकमे मिथिलांचलमे भूमि आन्‍दोलन जोरपर छल। आने गाम जकाँ हमरो गाममे पहीपट्टीबलाक आधासँ बेसी जमीन। बटेदार जगि कऽ बटायदारी आन्‍दोलन केलक। ओना गामबलाक खेत नहि मुदा बहरबैयाक प्रलोभन जे अहीं सभकेँ सभटा खेत सुमझा देलौं, ऐ लोभमे गामक लोक संग भऽ गेल। जमीनेक लोभ कुरसोवालीकेँ सोझहामे रखि, नेता बना टोलमे ठाढ़ कऽ देलक। बुझलो बातमे कुरसोवाली लोभा गेली। बुझल बात ई जे जे खेत बटाइ करैए ओकर तँ हक बनिते छै। मुदा मुफ्तक माल केकरा गाड़ा लगै छै जे कुरसोवालीकेँ लगैत, ओ ओइ आन्‍दोलनमे चारित्रिक गुण[1] बिसैर ओइ बटाइ जमीनपर अपन हक बनबैले छोट-छोट खोपड़ीनुमा घर बनबा, ओइमे आगि लगबा, गामक तीस-पैंतीस गोरेक बीच ओइ अगिलग्‍गी केसमे हमरो नाओं घोंसिया देलक। वएह कुरसोवाली जे मोहरा बनि गाममे एते भारी फसाद केलक। तेकरे सराधक चर्च छी।
निरीह, निरदोस सिंहेसराकेँ पुछलिऐ-
बुढ़ियाक मृत्‍यु नीक जकाँ भेल किने?”
हमर बात जेना सिंहेसराक मनकेँ बेध देलकै। ओकरो अपन माइयक किरदानी मनमे ठहकैत रहइ। जहिना विश्वमोहिनी लग नारद बाबाक बगलेमे शिवजीक दूत देख बानरक मुँह बनौने रहैत तहिना बूझि पड़ल। मुदा आब उपाइये की अछि। यएह ने जे ओ गामक इतिहासक एक अंश भेल।
मृत्‍यु सुनि सिंहेसरा बाजल-
कक्का, हम जे दू सालसँ पंजाब जाए लगलौं हेन, तेकर माक खुशीलाल काकाकेँ भऽ गेलैन। ई बिसैर गेलखिन जे सरकारो नोकरीबलाकेँ जनम भरि पार लगबै छै।
सिंहेसराक बात सुनि बूझि पड़ल जे माइक पीड़ा ओकरा सता रहल छै। कहलिऐ-
से की?”
सिंहेसरा बाजल-
कक्का, जखन माए दुखित पड़ल, अपने गाममे नइ रही, घरवालीक समाद गेल, जे रूपैया रहए से पठा देलिऐ। जँ अपने गाम चैल ऐबतौं ते ओहो आमदनी केतएसँ आनितौं।
बजलौं किछु ने मुदा मुड़ी तँ डोलाइये देलिऐ। डोलैत मुड़ी देख जेना सिंहेसराकेँ सह भेटलै। बाजल-
कक्का, बेमारी आगू हम सभ सकबै, केते कमाइये अछि। बुढ़ियाक दवाइ छुटि गेलइ। पछाइत बहीन आबि अपना ऐठाम लऽ गेलै। ओहो ते हमरे जकाँ अछि। ओहो नइ सकलै। बेमारी बैढ़ते गेलइ। ओतै मरि गेल। ओतै जराओलो गेल।
जेना साँस छुटल, कहलिऐ-
तँए ने बुझने छेलौं।
भोज-भात नीक जकाँ केलहक किने?”
सिंहेसराक आँखि ढबढबाएल। बाजल-
केकरा नइ माए-बापक सेवाक लिलसा रहै छै, मुदा ओते वैभवो रहत तखन ने पार लागत।
कहलिऐ-
अखन काजक बेर अछि, तोहूँ जाह अपन काज देखहक आ हमहूँ खेत देखैले जाइ छी।
शब्‍द संख्‍या : 1227, तिथि : 15 फरवरी 2016


[1] क्‍लास कैरेक्‍टर