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Thursday, March 16, 2017

वर्थ डे


वर्थ डे

चैत मरनासन होइते बैशाखक आगमन भऽ गेल। ओना, जहिना मासक जन्‍म भेने मास मरितो अछि आ जनैमतो अछि, तहिना ने मौसमोक मासुपन होइए।
भिनसुरका समए। प्रखर मौसम रहने सूर्यक किरिणोमे प्रखरता आबिए गेल अछि। चौक-चौराहाक दोकान-दौरी जे जाड़क मासमे सिरसिराइत अबेर कऽ खुजै छल ओ जेना-जेना गरमी धबैत गेल तेना-तेना सबेर खुजए लगल, तँए आब चारि बजे सबेरगरेसँ चौकक दोकान खुजए लगैए। ओना, दोकानो-दौरीक अपन-अपन हिसाब अछि। किछु एहेन अछि जेकर गहिंकी चारि बजे भोरेसँ पहुँचए लगै छै आ किछु एहनो अछि जे आठ बजेक पछाइत खुजैए आ किछु एहनो तँ ऐछे जे दस बजेक पछाइत खुजैए।
आने जकाँ जीवन काका सेहो चारि बजे भोरे चौकपर झूठ-साँच समाचारो सुनैले आ खेती-पथारीक गपो-सप्‍प करैले पहुँचबे करै छैथ। मौसमो अनुकूले रहै छैन। मौसम अनुकूल ई जे जहिना बारह मासक सालमे तीनटा मौसम रहने छहटा रीतु अछि, तहिना ने दिन-रातिक बीच सेहो दूटा मौसम अछि। तैसंग दूटा समरस सेहो अछिए। एकटा भेल राति-दिनक सीमानपर भोरक आ दोसर भेल दिन-रातिक सीमानपर साँझक। ओना, दुनू मौसमक अपन-अपन गुण सेहो छइहे। जहिना पूर्बा हवा देहक ऊपरमे ठंढा लगैए आ देहक भीतर खौंतियबैए तहिना ने पछबा हवा ऊपरसँ खौंतियबैए आ भीतरसँ ठंढ बनबैए। खाएर ई तँ भेल हवाक बात, साँझ-भोरक अपन हिसाब अछि। जे दुनू दू गतिये चलैए। माने ई जे जखन हवा चलैत रहत, तखन एक रंगक भेल आ जखन हवा ठाढ़ रहत तखन दोसर रंगक भेल। मुदा से नहि, एक तँ शुरूक समए, जे अंगरेजीक बीतैत मार्च आ चढ़ैत अप्रीलक भेल, आ वसन्‍त रीतुक अधबेसू वसन्‍त भेल।
चौक-चौराहाक हवा-पानि पीब जीवन काका घरपर एला। ओना माल-जालकेँ सेबेरे घरसँ निकालि बाहरक नादिमे बान्‍हि खाइ-पीबैले सानी-कुट्टी लगाइए गेल रहैथ, जे खा कऽ मालो-जाल अरामसँ बैस गेल छल।
घरपर अबिते जीवन काका पहिने माल-जाल देखलैन। तीनू मालकेँ बैसल पौज करैत देख चोट्टे घुमि कऽ दरबज्‍जापर होइत आँगन गेला तँ देखलैन जे दछिनबरिया ओसारपर मन मारि पुतोहु बैसल छेली आ पछबरिया ओसारपर पत्नी दुनू पोती आ दूटा आन अँगनाक स्‍त्रीगणक संग चुपचाप बैसल छैथ आ मने-मन किछु विचारि रहल छैथ।
दुनू ओसारपर नजैर आँखि पड़िते जीवन काका तारतममे पड़ि गेला जे किए सभ एना ठकुआएल बैसल छैथ! अखन तँ भोरक समए छी, दिनक शुरूआतक समए, जे केतेको काज करैक समए छी, तखन किए सभ मन मारि बैसल छैथ? जँ भोरेमे लोकक काज हेरा जाए, माने नइ रहै तखन भरि दिन पानि डेंगोनाइ छोड़ि ओ करत की..? 
आँगन-दरबज्‍जाक बीच मुँहथैरपर ठाढ़ भेल जीवन काका दछिनबरिया ओसारपर बैसल पुतोहुपर नजैर देलैन तँ देखलैन जे पुतोहुक आँखिसँ नोरक बून छिटैक रहल छैन। नोरक बून देख मने-मन सोचए लगला जे किछु कारण जरूर अछि। मुदा जाबे ओ किछु बजती नहि, ताबे बुझबो केना करब..?
पत्नी दिस नजैर दैत जीवन काका बजला-
किए सभ हड़ताल केने छी?”
पत्नी तँ हँ-हूँ किछु ने बजलैन। मुदा मिरमिराइत पुतोहुक मुहसँ निकलल-
रोशनक आइ वर्थ डे...।   
रोशनक वर्थ डे सुनि जीवन कक्काक मनमे जोरक धक्का लगलैन। धक्काक कारण भेलैन जे तीन मास पूर्वे रोशन दुनियाँ छोड़ि चुकल छल। माने कल लगक खाधिमे जइमे कलक पानि जमा होइत अछि, ओही खाधिमे खसि रोशन जाड़े कठुआ कऽ प्राणान्‍त कऽ चुकल छल। शरीरक तँ अन्‍त भऽ गेलै मुदा जिनगीक अन्‍त केना मानल जाए। किछुओ दिन तँ घरवास केनहि अछि।
ओना, जहिना आन परिवारमे एक-एक बेकतीकेँ अनेको नाओंसँ पुकारल जाइ छै तहिना जीवनो कक्काक परिवारमे छैन्‍हे। जीवन काकाकेँ सेहो किछु गोरे जीवन काका’, तँ किछु गारे मन्नु बाबा तँ किछु गोरे ब्रह्मानन्‍द बाबा सेहो कहिते छैन तहिना रोशनोकेँ कियो रोशन तँ कियो बेल तँ कियो बेलबा तँ कियो छोटका बौआ सेहो कहिते अछि।
पहिल बर्ख पुरलापर रोशनक वर्थ डे धुमधामसँ परिवारमे मनौल गेल छल, आइ दोसर साल छी। ऐ बिच्‍चेमे रोशन पौने दू बर्खक आयु पुरबैत दुनियाँ छोड़ि देलक।
जहिना गाम समाजक बुढ़-पुरान जीवितकेँ मर्तलोक[1] आ मृत्‍युकेँ मृत्‍युलोक[2] बुझबो करै छैथ आ बजबो करै छैथ तहिना जीवन काका सेहो पुतोहु दिस तकैत बजला-
रोशन स्‍वर्गक सुख करैए, अपना सभ नर्कमे छी, तखन अनेरे जे घर-परिवारक काज छोड़ि सभ चिन्‍तित भेल बैसल छी से अनेरे ने। दिनक जे भावी छल ओ भेल। तइले अनेरे सोग-पीड़ा केने की हएत। जे धारलिऐ से केलिऐ। जानि कऽ वा अनजानमे चूक भेल हएत, से ओ माफ करत।
ओना बजैक क्रममे जीवन काका बाजि तँ गेला मुदा अपनो मन भीतरे-भीतर कानए-कलपए लगलैन। कानए-कलपए ई लगलैन जे रोशन तँ चेतनशील छल नहि, तखन ओकर बुधि केना क्रियाशील होइतइ आ विचारैत केना जे परिवारमे अहिना कनी कम-बेसी होइते छइ। तहूमे रंग-बिरंगक लोक सेहो रहिते अछि, तँए टुटी-फुटी कनी हेबे करैए।
रंग-बिरंगक माने भेल जे एक वंशक वा एक कुल-खनदानक रहने लोकक शरीरक रंग-रूप, लम्‍बाइ-चौराइ किए ने एक रंग हौउ, मुदा बुधि-विचार केना एक हएत। ओ तँ भीतर-बाहर दुनूक बीचक शक्‍ति छी, ओ तँ उमेरोक हिसाबे आ गतिशीलतोक हिसाबे कम-बेसी हेबे करत।
जीवन कक्काक मन ठमैक गेलैन। ठमैक ई गेलैन जे रोशन तँ ने आब ऐ धरतीपर आबि माइक दूध पीबत आ ने हमरे संगे हँसुआ-खुरपी नेने बाड़ी-झाड़ीमे खसैत-पड़ैत, कनैत-खिजैत जाएत, ओ तँ आब नइ रहल, ई तँ सभकेँ बुझए पड़तैन किने..?
तैसंग ईहो ने बुझती जे रोशन देहसँ हटि गेल, मुदा देही वा शरीरीसँ थोड़े हटल। ओ आत्‍मास्‍वरूप चेतन शक्‍ति छी, पौने दू बर्खक रोशनक ओ शक्‍ति तँ अपन आत्‍म-स्‍वरूपमे मिलि गेल अछि। जइसँ पौने दू बर्ख, एक्कैस मास भऽ गेल। एक्कैस मास चौरासी सप्‍ताह भऽ गेल आ चौरासी सप्‍ताह, सात गुणे बेसी दिन भऽ गेल, इत्‍यादि-इत्‍यादि भाइए गेल अछि किने, तँए स्‍मृति सनेस नइ देत सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए।
अनायास जीवन कक्काक निराएल आँखिक बून एक-दोसरमे सटि-सटि टघार बनि गालपर होइत टघरैत रहबे करैन, तही बीच पुतोहुओ आ पत्नियोँक आँखि चढ़लैन, आँखि चढ़िते विचारक संतरण हुअ लगलैन। तैबीच साउस–सुदामा–संतरण होइते सामंजस करैत पुतोहुकेँ कहलखिन-
रोशन की तोरेटा छेलह जे हेरेलह आ तोरेटा दुख होइ छह, हमर पोता नइ हेराएल, बुड़हाक बेल नइ हरेलैन! सबहक हेराएल! तँए आब सभ कियो अपन-अपन खेलौन[3] नेने अपन-अपन जिनगीमे नइ लगबह तँ काल्हि-दिन केना चलतह।
पत्नीक विचार सुनि जीवन कक्काक मन पघिल-पघिल कऽ गील हुअ लगलैन। बेलबाक रंग-रंगल रंग सबहक मनमे नाचए लगलैन। अँगनाक रूप बदलल। मन-चित्त दाबि सभ अपन-अपन दिनचर्या दिस बढ़ली।
आँगनसँ दरबज्‍जापर अबैत-अबैत जीवन कक्काक मन घुमए लगलैन। अपन घुमैत मन देख जीवन काका सोचलैन जे या तँ ओछाइनपर पड़ि रही या नइ तँ बैसिये जाइ। किएक तँ जखन अपने मन बेसमहार भऽ जाएत तखन तँ आरो बेसी नोकसान हएत।
दरबज्‍जाक ओसारक दछिनबरिया चौकीपर बैसते जीवन कक्काक मन पुतोहुक मुहसँ निकलल शब्‍द- वर्थ डे पर गेलैन। कहाँसँ कहितैथ जे जन्‍म साल छी, जन्‍म दिन तँ संभव नहि अछि। तारीख वा तिथिकेँ दिनक मिलान नइ होइए। वा साल गीरह छी, यएह गीरह ने गोठिया कऽ गाँठ बनैए, जेकरा वर्षगाँठ सेहो कहै छिऐ...।
मुदा लगले जीवन कक्काक मन पाछू घुमलैन। घुमिते देखलैन जे परिवार-परिवारक लोक टी.वी.क संग आब मोबाइलोमे वर्थ डे मनबैत, थोपड़ी बजा-बजा वर्थ डे गबैत देखैए-सुनैए। कोन माइक इच्‍छा नइ हेतैन जे कोखिया गुहारि हुअए। जहाँ धरि वर्थ डेक प्रश्‍न अछि, ई शब्‍द छी, बेसी-सँ-बेसी पाँति भऽ सकैए, मुदा भाषा तँ भाषा छी, गंगा सदृश अछि, जइमे नीक-अधला सबहक समावेश होइते अछि। तँए पुतोहुक बात जीवन काकाकेँ अरूचिगर नहि रूचिगर लगलैन।
ओना तीनू गोरे–माने जीवन काका, जीवन कक्काक पत्नी सुदामा आ पुतोहु श्‍यामा–तीन दिस नजैर बढ़ौलैन, मुदा रोशनक वर्थ डे किनको मनसँ सोल्‍हन्नी नइ हटलैन। हटबो केना करितैन। जहिना जीवन कक्काक मनमे तहिना सबहक रोशन बसले छल।
भानसा-घरमे पएर दइते श्‍यामा चुल्‍हिकेँ गोड़ लगैत बजली-
हे चुल्‍हि, अहीं छी आ हमहीं छी जे लालक माने रोशनक पहिल वर्थ डेक दिन केना जीबैत लहलह करैत रहलौं। पहिल सालक वर्थ डेमे ईबेर केत्ता कप चाह अतिथि-अभ्‍यागतक सेवामे लगा चुकल रही, मुदा आइ..!”
अबैत-अबैत विचारक क्षेत्रमे आबि श्‍यामा ठमैक गेली। ठमैकते ठकमुरा गेली। ठकमुराइते जेना जिनगीमे लगल जंग छुटि-छुटि जगलैन। जगिते मनमे उपकलैन- यएह छी जिनगी आ जिनगीक लीला। सभ जनै छी जे जे देह रूपमे जन्‍म लेलक ओ अन्‍त करबे करत। मुदा देह तँ देहेटा नइ छी, जँ सोल्‍होअना ओकरा माटियेक मानि लेब सेहो तँ उचित नहियेँ हएत। चलबो-फिरब आ सोचबो-विचारब दिस ने देखए पड़त।
एकाएक श्‍यामाक नजैर दौड़ैत रोशनकेँ दुनू हाथे पकैड़, कोरामे उठा, बीच आँगनमे ठाढ़, अपन छातीसँ लगौनेपर पड़लैन। जखन रोशन अपन पहिल साल गिरह पैरमे मौजा-जूतासँ लऽ कऽ देहमे शर्ट-पेन्‍ट, माथपर टोपी लगा मनौने रहए, ओइ संग परिवारो आ कुटुमो-समाज तँ भरि दिन रोशनेक विरुदावली गबैत रहला, मुदा अपन दोसर साल गिरह रोशन कहाँ देख पौलक! कहाँ हमहीं आकि ई चुल्‍हिये लहलहा रहल अछि..!
मन-चित्त समेट श्‍यामा जीवनक दुख-धन्धामे लगि गेली। मनमे उठलैन- पौने दू बर्खक बेटा दुनियाँ छोड़लक, की ओकरा मनमे हमहूँ-सभ बसल हेबइ? नइ! हमरा सभ जकाँ ओ कहाँ रहल? ने ओ किछु बुझि पबैत हएत आ ने चिन्‍ह पबैत हएत। ने ओकरा बुझैक आ ने चिन्‍हैक किछु शेष हेतइ। ओकर सोचै-विचारैक जगहे मेटा गेल, ओ बिसैर गेल हमरा सभकेँ..!
श्‍यामाक मन थरथराए लगलैन। पानि जकाँ थरथराइत मनकेँ थीर केली। मन थीर होइते मुहसँ बकार फुटलैन-
कोखिक सन्‍तान छल। अपना उकिते जे जनलिऐ से तँ करबे केलिऐ। आब बेसी-सँ-बेसी एतबे ने हएत जे अपन दिलक डायरीमे, सन्‍तानक संख्‍यामे लिखि कऽ राखब। जँ से नइ राखब तँ प्रसव पीड़ाक वेदना, मातृत्‍वक जे विशिष्‍ठता छी ओ हेरा जाएत। जइसँ नारीत्‍वक शक्‍तिमे कमी औत।
मालक घरक थैरमे सुदामा काकी गोबर उठबैले बैसबे केली कि आँगनसँ पछुअबैत रोशनक स्‍मृति रूप आगूमे आबि गोबरकेँ देखबैत कहलकैन-
ई-इ-इ..!”
सुदामा दादी बुझि गेली जे नान्‍हिटा बच्‍चा गोबर उठबए कहि रहल अछि। सुदामा काकीक मनमे ठहैक एलैन जे की गोबरकेँ घृणाक नजरिये देखा रहल अछि आकि क्रिया स्‍वरूप?
मुदा सुदामा काकीक सभ दिनक जे काजक अभियास छैन, ओइ अनुकूल बिना मनसँ जपनौं हाथ क्रियाशील भऽ गेलैन।
जखने हाथ काजकेँ पकैड़ कजियबैत जिनगीकेँ कबजियबए लगैत अछि तखने जिनगी कबजियाइत कीर्ति दिस बढ़बे करैए, सुदामो काकीक हाथ बढ़लैन।
आगू बढ़िते मनमे उपकलैन- ई तँ दुनियाँक लीला छी, जेते दिनक खातिर आ जेते भूमिका करैक भार लऽ कऽ रोशन आएल ओ करैत गेल। मनमे उठिते सुदामाक प्रशान्‍त मन उदिग्न मनकेँ शान्‍त करैत रोकैत कहलकैन-
करोड़ो तरेगनसँ सजल अकासमे साइयो जन्‍मो लैत आ टुटि-टुटि खसबो करैत, तँए कि अकासक शोभा-सुन्‍दरमे कमी होइए आकि विलीन होइए, नहि! ओ तँ रहबे करैए। अपनो परिवार ऐछे, तरेगने जकाँ ने बढ़बो करैए आ घटबो करैए। मुदा जैठाम बढ़ती-घटतीक समरूप रहत तैठाम घटवारि-बढ़वारि हेबे किए करत।
प्रशान्‍त चित्त होइते सुदामा काकीक मन सहमलैन। सहमलैन ई जे चेतने-अचेतनेक बीच ने दुनियाँ चलि रहल अछि। जखन अही दुनियाँमे अपनो छी तखन ओहीक देखा-देखी ने अपनो चलए पड़त। अपन जिनगीक तँ यएह ने लेखा-जोखा हएत जे जइ दिन धरतीपर पएर देलौं तइ दिनक परिवार की छल, समाज की छल आ आइ की अछि। अही बीच ने कम-बेसी अछि, जइमे लोक अपन हारि-जीत बुझैए। अनेरे मनकेँ वौअबै छी
मुदा तैबीच पहिल गोबरक चोत सुदामा काकी उठा नेने छेली आ दोसर चोत दिस हिया कऽ देख रहल छेली, तखने बुझि पड़लैन जे ऐसँ नमहर अछि। उठि कऽ ठाढ़ होइते मनमे उठलैन- रोशनो तँ अपने अमलदारीमे आएल। माने ई जे अपने जीता-जिनगीमे एबो कएल आ गेबो कएल। केना कोनो दादी अपन पोताकेँ बिसैर जाएत? रोशनक दादी हमहीं ने छिऐ, पोता हमरे ने छल, की मनमे जे डायरी विधाता देलैन ओइमे एतबो जगह खाली नै अछि जे अपना रोशनकेँ अपनो मनमे लिखि राखब? पौने दू बर्खक रोशन पौने दू बर्ख जहिना सबहक संग संगी बनि संगबे जकाँ रहल तहिना ने संगबे जकाँ चलबो करत। मालक घर आबि रोशन जहिना गोबर देखबै छल, नाइद-खुट्टा देखबै छल, घूर लग बैस आगियो तपै छल, संगे-संग खेबो करै छल तहिना ने मन-मन्‍दिरमे बास करैत ताधैर बसैत रहत जाधैर बसै छी।
गोबर समेट कऽ उठा मालक घरसँ सुदामा काकी निकलली तँ चापाकलक चबुतरापर ठाढ़ श्‍यामापर नजैर पड़लैन। नजैर पड़िते आँखि उठा-उठा पुतोहु दिस देखए लगली तँ मन कहलकैन जे रोशन तँ हमर पोता भेल, असल तँ कोखिक रत्न जिनकर छेलैन हुनका मनमे की वरैस रहल छैन। लाल सागरसँ उठल वायु लाल बरखा करैत आकि काला सागरक कारी? मुदा तैकाल श्‍यामाक नजैर रोशनक ओ रूप देख रहल छेलैन जे दादीक आगू-आगू खेतक खाधिमे लग पहुँच देखबै छेलैन। ओना आगू-आगू रोशनकेँ बढ़ने[4] सुदामा दादीक भार[5] बढ़िते छेलैन मुदा तैयो रोशनकेँ ऐ दुआरे अगुएने चलै छेली जे बाल-बोध अछि, अखन हाथ-पएर असथिर नइ भेल छै, जँ अपने अपन भार कमबै दुआरे पोताकेँ पछुअबैत चलब, सेहो तँ नीक नहियेँ हएत। एक तँ जखने ओकरा पाछू करबै तखने ओ कानत, किएक तँ आगू केतए जाएब से ओकरा बुझले नइ छै, जँ देखलो-बुझल हेतै तँ चंग मन उचैंग गेल हेतइ। तैसंग ईहो तँ ऐछे जे अपनो आँखि (नजैर) अपने आगू ने देखत, जे पाछू रहत तेकरा केना देखत। तेकरा देखैक तँ उपाय यएह ने हएत जे ओकरा आँखिक आगू अपन आँखि राखब...।
अपन बेथाकेँ श्‍यामा सुदामा दादीपर थोपैत बजली-
आब ने रोशन अछि आ ने रोशनक दुनियाँ। आब के बुढ़िया दादीक हाथक आँगुर पकैड़ पाछूओ-पाछू चलत आ आगूओ-आगू देखबैत चलत..!”
पुतोहुक बात सुनि सुदामा काकी ठमैक गेली। ठमैक ई गेली जे जँ पुतोहुकेँ किछु कहबैन तँ ओ अनेरे अपन दैनंदिनक क्रिया रोकि समोहमे पड़ि जेती, तइसँ नीक जे किछु बजबे ने करब।
अही अगदिगमे सुदामा काकीक मन पड़ल छेलैन। तही काल जीवन काका दरबज्‍जासँ ई सोचि उठि कऽ कल दिस बढ़ला जे जहिना अपन मन बेलबाक स्‍मृतिमे वौड़ा रहल अछि जइसँ कोनो काजमे नजरिये ने सन्‍हिया रहल अछि, तहिना तँ ने पत्नियोँ आ पुतोहुओकेँ होइत छैन।
भानस घरसँ आगू बढ़िते जीवन काका देखलैन जे गोबरक पथिया माथपर नेने पत्नी, खेतमे खुनल गोबरक खाधि लग ठमकल माथपर भारी नेने ठाढ़ छैथ। तहिना पुतोहुओ कलक हेन्‍डिल पकड़ने सासुक उत्तरक आशा देख रहल छेली।
पत्नियोँ आ पुतोहुओकेँ देख जीवन कक्काक मन मानि गेल छेलैन जे दुनू गोरे अपन-अपन जीवन क्रियामे लगि गेल छैथ। मुदा अपन मनक स्‍मृति जीवन क्रिया दिस बढ़ए नहि दैन। रंग-रंगक प्रश्‍न मनमे बर्खाक बुलबुला जकाँ उठैन आ लगले फुटि-फुटि विलीन होइत जाइन। मुदा बर्खोक तँ किछु बुलबुला एहनो होइते अछि जे लगले नहि फुटि पानिक टघारक संग किछु दूर धारा पकैड़ संग धरिया-धरिया बढ़ितो अछि। ओना, छी तँ पानियेँक बुलबुला जइमे स्‍थायित्‍व नहियेँ छै मुदा तैयो अपन जिनगी बँचबैत किछु दूर धरि तँ बहिते अछि।
अनायास जीवन कक्काक मन परिवारसँ सर-समाजक ओइ असिरवादपर आबि अँटैक गेलैन जे रोशनकेँ आशीष रूपमे दैत देखने- सुनने छला। ओ विचार फुटि जीवन कक्काक मुहसँ निकललैन-
कहाँ रोशन दीर्घजीवी भऽ सकल! कहाँ ओ अपन भविसक भवितव्‍य देख सकल!”
ओना जीवन कक्काक मुहसँ निकैल तँ गेलैन मुदा लगले प्रशान्‍त मन शान्‍त करैत कहलकैन-
ई तँ दुनियाँक खेले छी जे सभ अगिले आशा देख जिनगीकेँ क्रियाशील बनबैए।
प्रशान्‍त मनक शान्‍तचित्त चेतैबते जीवन कक्काक विचारक रूप बदललैन। विचारक रूप बदैलते मन कलशलैन। कलैशते नब टुस्‍सा जकाँ मन टुस्‍कियेलैन। टुस्‍कियाइते जहिना गाम-घरक पानि धारा बनि धार बना गंगामे मिलि गंगासागरसँ मुँह मिलैए तहिना जीवन कक्काक विचारमे सेहो एलैन। एलैन ई जे सबहक तँ बुझले-गमल, देखले-सुनल अछि जे खाली जीवनेक पोताक संग परिवारमे नहि, आनो-आन अनेको परिवारमे अहिना होइत आबि रहल अछि। एक बाबाक नहि सैयो-हजारो बाबाक पोताक अन्‍त अहिना भेल अछि, आगूओ हेबे करत। तइले अनेरे मनकेँ विघ्न करैत बेधै छी। जेते समए बेधैत रहत ओते तँ जिनगियेक क्रिया ने ह्रास करत। मन ठमकलैन। ठमैकते जीवन काका बुदबुदेला-
जेतबेटा औरुदा किए ने रोशनकेँ भेटल हौउ, मुदा छल तँ ओ बेदाग, तखन किए ओकर जिनगी एतबेटा भेल?”
मनक उठल प्रश्‍न जीवन कक्काक मनेमे घुरिया लगलैन। मुदा उत्तर नहि भेट उत्तेजित होइत संकल्‍पित भेला। नहि! बेलबा हेराएल कहाँ अछि ओ तँ आँखिक सोझहेमे अछि जे खाली बेलबे नहि, हजारो-लाखो बेला जाड़क खाधिक पानिमे खसि-खसि अन्‍त करबे करैए। मनमे अबिते दरबज्‍जापर आबि बैस रहला।
दरबज्‍जापर बैसल जीवन कक्काक मनमे उठलैन- रोशनकेँ पहिल वर्थ डे दिन सभ कियो दीर्घजीवीक असिरवाद देलखिन, नीक भविसक शुभकामना सेहो देलखिन। मुदा रोशन अपन वर्थ डे कहाँ देख पौलक..!
जीवन कक्काक मन-मियादि उनटए लगलैन, मनकेँ चारू भागसँ अशान्‍ति घेर लेलकैन। जीवन-मृत्‍यु आगूमे आबि ठाढ़ भऽ गेलैन। पछाइत जीवन-मृत्‍यु स्‍वयं एक प्रश्‍न बनि शान्‍त केलकैन।
शब्‍द संख्‍या : 2535, तिथि : 16 फरवरी 2017


[1] नर्क
[2] स्‍वर्ग
[3] रोशनक स्‍मृति स्‍वरूप
[4] छोट पएर रहने छोट डेगे
[5] गोबर भरल पथियाक भार रहने

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