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Wednesday, July 5, 2017

मर्माहत, कथाकार : जगदीशप्रसादमण्‍डल, Jagdish Prasad Mandal

जोगारी भायकेँ गामक सभ जनै छैन जे ओ ओहन लोक छैथ जे अपन जिनगी चलबैक सभ जोगार अपने रखने छैथ। जहिना कुशल किसान अपना खुट्टापर बरद-महींसक संग खेतीक सभ समचा–माने हर-कोदारि, खुरपी-हँसुआसँ लऽ कऽ टेंगारी-कुरहैर होइत दमकल-बोरिंग तक–अपना हाथमे रखि नियमित जिनगी बना, नियमवद्ध चलै छैथ तहिना जोगारी भाय सेहो छथिए। जखन दुनियॉंक बीच मनुख बनि जीवन धारण केलौं तखन जँ अपन जिनगी समेट चलैक तँ दोसरोक सेवा नइ भेल तखन भक्‍ति की आ भजन की? आ जँ भक्‍ति-भजन करैत जिनगी नइ चलल तखन जिनगिये की। जिनगीक लेल जे आवश्‍यकता अछि, आवश्‍यकता अछि जिनगीक अनुकूल, माने ई जे केहेन जिनगी बना चलए चाहै छी। जेहेन जिनगी रहत ओइ अनुकूल ओकर आवश्‍यकता सेहो अछिए।
चालीस बर्ख पूर्व जोगारी भाय तीन कट्ठा बँसवारि लगौलैन। पिताक देल जे बँसवारि छेलैन ओ ताम-कोर आ ताक-हेरक दुआरे उपैट जकॉं गेल छेलैन। जइसँ अपन आवश्‍यकता पूर्ति होइक संभावना नइ देखलैन। बाँसक खगतो तँ कम नहियेँ अछि। घर-घरहटसँ लऽ कऽ टाट-फरक, बाड़ी-झाड़ी-ले मचानक संग बरेब-बाड़ी-ले सेहो खगता होइते अछि। तहूमे हम सभ ओहन किसान परिवारमे जन्‍म नेने छी, जइ परिवारमे बॉंस उपजबैक साधन–माने जमीनसेहो अछिए। बॉंस-गाछी गामक ओहन जमीनक पैदावार छी जे ऊँचरस हुअए। बाढ़ि-बर्खाक इलाका अपन छीहे जैठाम गामक आधासँ बेसी जमीन या तँ चौरी अछि वा ओहन नीचरस जमीन अछि, जइमे बॉंस गाछ नइ लागि सकैए। बॉंस ओहन खेतक पैदावार छी जे घराड़ीक सदृश हुअए। जइ गाममे घर बनबैले जमीन सभकेँ नइ छै तइ गाममे बॉंस-गाछ लगबैक जोगार केतए-सँ औत। जोगारी भायकेँ से नइ छैलैन। पुरना बँसवारि तीन-चारि साल रखि तैबीच ओइसँ काज चलौलैन, ओना सभ काज ओइ पुरना बँसवारिसँ नइ चलै छेलैन मुदा तैयो बिकरी-बट्टा नइ भेने अपन काज तँ चलिते छेलैन। ओना बँसवारि निच्‍चॉं मुहेँ हहैरिये रहल छल जइसँ आगू बाधा उपस्‍थित हेबे करतैन। यएह सोचि जोगारी भाय नवका बँसवारि लगबैक विचार केलैन।
जुड़शीतल पाबैन, चैत-बैशाखक बीचक सिमान छीहे। जहिना चैतक गाछी आ माघक बाछी निरोग होइए तहिना बॉंसो अछिए। जेहेन बॉंस रोपल जाइए ओइमे नव बॉंसक कोंपर सेहो निकैलते अछि। रोपला पछाइत जँ नियमित ओकर पटौनी होइ तँ ओ अपन कोंपरकेँ जोगा नव बॉंसक रूपमे ठाढ़ करबे करैए। लोटा-बाल्‍टीसँ लोक गाछी-कलममे जलधार करिते छैथ मुदा तुलसी सन छोट गाछ-ले जँ एक कलश–माने एक डाबा–पानिक खगता प्रतिदिन होइ छै तैठाम नमहर गाछ-ले तँ ओइसँ बेसी खगता हेबे करत। ओना, तुलसीक छोट गाछ होइ छै, जइसँ ओकर मुसरो आ सिरो सभ धरतीक ऊपरके परतमे रहैए। जमीनक ऊपरका हाल[1] जे चाहे तँ निच्‍चॉं मुहेँ ससैर जाइए वा सुखिये जाइए जइसँ माटि बेरस भाइये जाइए। बेरस भेने सुखैक संभावना सेहो भाइये जाइ छइ। मुदा नमहर गाछक मुसरो आ सिरो तँ बेसी तर[2] तक जाइते अछि तँए ओइसँ बेसी (माने तुलसीसँ बेसी) जीबैक संभावना रहिते अछि तँए जँ एक लोटा पानि ओकरा[3] जड़िमे जुड़शीतल पाबैन दिन पड़ौ वा नहि पड़ौ, ओइसँ ओकर कोनो हर्ख-विस्‍मय नहियेँ होइ छै मुदा तैयौ किसान अपन पाबनिक विधान, नइ पान तँ पानक डन्‍टियोसँ पुरबैक विचारानुकूल एक लोटा जलधार करिते अछि।
ओना आइ जुड़शीतल पाबैन छी, तँए किसान परिवारमे आरो बेसी काज अछिए। काजक हिसाबे औझुका दिन[4] छोट पड़ि जाइए। किए तँ भोरे सुति उठि गाछी-कलम, बाड़ी-झाड़ीकेँ जुड़बैतमाने जलधार करैत–माल-जालकेँ नहौनाइ-धोनाइसँ लऽ कऽ घरक केबाड़, बक्‍सा-बुक्‍सीकेँ धोनाइक संग-संग ऑंगन-घरक रस्‍ता-पेरा जुड़ौनाइक संग पोखरिक घाट आ इनारकेँ सेहो उराहब रहिते अछि। तैसंग चैतक रान्‍हल बैशाखमे खा कऽ पुरौनाइ सेहो अछिए। तेतबे किए, समाजक संग महादेव-पार्वतीक नाच, जय शिव-जय शिव करैत सौंसे गाम घुमनाइ सेहो अछिए। एते तँ एक उखड़ाहाक–माने दुपहरसँ पहिनुक–भेल, दोसर उखड़ाहाक तँ पछुआएले अछि जेकरा सॉंझ धरि पुरबैक अछि। ई तँ भेल पहिल प्रकरण, दोसर प्रकरण तँ तेते नमहर अछि जे सॉंझ तक पुराएबो कठिन। ओ अछि किसानी जिनगीक उपद्रवी जानवरक शिकार सभकेँ गामक बोन-झाड़सँ रेबाड़ि-रेबाड़ि सीमा टपा-टपा भगाएब। तहूमे जँ सीमा टपबैकाल दोसर गामक शिकारीक संग भिड़ानी भऽ गेल तखन तँ आरो बेठेकान काज भऽ गेल। मुदा जे हुअए, जोगारी भाय मनमे ओही दिन रोपि लेलैन जे जहिया बॉंस रोपैक मुहूर्त बनत तहिया तीन कट्ठा बॉंस जरूर रोपब। ओना बॉंस रोपैक मुहूर्त जुड़ेशीतल पाबैन दिनटा नहि छी ओइसँ पहिने ओते दिन अछि जेते ओकर पछातिक अछि। दुनू कातक पलड़ामे दू परिस्‍थिति सेहो अछिए। एक दिस जँ पानिक (पटौनीक) खगता कम अछि तँ दोसर दिस पानिक खगता ओते बेसी अछि। यएह सोचि जोगारी भाय तँइ कऽ लेलैन जे जुड़शीतल पाबैन दिन किसानीक आन काज छोड़ि पाबैन मनबैत तीन कट्ठा बॉंस रोपब। बॉंस रोपब आकि बँसवारि लगाएब? मुदा अखन तँ ओ बॉंसे रोपब हएत, लगला पछाइत ने ओ बँसवारि हएत। जहिना कोनो वैचारिक संस्‍थाकेँ पहिने विचारमे आनल जाइए पछाइत नीब लेल जाइए। तहिना जोगारी भाय जिनगीक मूल खगताकेँ पहिने मनमे रोपि पूर्तिक विचार ठानि लेलैन।
ओना, बीटमे[5] पुरान-सँ-पुरान पाकल-झुरुरक संग पकि-पकि सुखलो रहबे करैए मुदा वंश वृद्धिक लेल तँ ओहने ने रोपल जाएत जइमे कोंपरक ऑंखि होइ आ रोपला पछाइत ओ कोंपर दिअए। ओहन बॉंस तँ नहियेँ रोपल जाएत जेकर ऑंखिये भथा गेल होइ। पुरना बँसवारिसँ नवका–माने भौर परहक–बॉंस ठिकिया जोगारी भाय पहिनहि रखि नेने छला। चालीसटा बॉंस रोपब छैन, जेकरा बीटसँ उखाड़बोक छैन। नमगर-चौड़गर काज रहितो जोगारी भाइक मनसूबामे मिसियो भरि कमी नहियेँ छेलैन। एते बिसवास बनले छेलैन जे एकटा-एकटाकेँ उखाड़ि रोपलासँ बेसी समैक नोकसानी हएत तँए एक झोंकमे पहिने चालीसोटा उखाड़ि लेब आ दोसर झोंकमे रोपि, तेसर झोंकमे पटौनी करैत सबेर-सकाल घरपर आबि जाएब। सएह केलैन।
आने खेती-बाड़ी जकॉं जोगारी भाइक बँसवारि सेहो नीक छैन्‍हें। पुरना बीटक बॉंस समाप्‍त होइत-होइत जोगारी भाइक नवका बीटक बॉंस शुरू भऽ गेलैन। किसानी जिनगीक तँ नगदी खेती बॉंस छीहे। तहूमे गाम-गाम बजार बनल अछिए। किछुए किसान उपजौनिहार छैथ मुदा खगता तँ सौंसे गाममे रहिते अछि।
अखन तकक जिनगीमे जोगारी भायकेँ बॉंस सहयोगी पूजीक रूपमे संग दइते आबि रहल छेलैन। मुदा दिनो-दिन गमैया बजार टुटए लगल। किछु लोक ईंटाक घर बनौलैन तँए बॉंसक खगता कमल। मुदा तेतबे नहि ने भेल। बॉंसक दोसर जरूरत जे बरेब-बाड़ीमे होइ छल आ बरसाती तरकारीक मचानमे सेहो होइत छल। उहो कमि गेल।
बॉंस लगौलाक पॉंचे बर्खक पछाइत जोगारी भायकेँ नीक बँसवारि बनि गेलैन। ओना बॉंसक बँसवारि हुअए आकि शीशोक शिशबोनी आकि आने गाछक गाछी लगबैक दिनमे लगौनिहारकेँ विशेष जिज्ञासा रहिते अछि मुदा किछुए लगौनिहार ओहन होइ छैथ जे धनबल बुझि ओकर धनि रखै छैथ, बल्‍कि अधिकतर ओहने लगौनिहार होइ छैथ जे एक-झोंकाह होइ छैथ। झोंकाहो कि कोनो एके रंगक अछि। सभ कथुमे, माने सभ काजमे सब रंगक झोंकाह होइते छैथ। जेना देखै छी जे किछु पढ़निहार अपनाकेँ पढ़ाइ दिस तेना झोंकि दइ छैथ जे या तँ दुनियॉंसँ हेरा जाइ छैथ वा दुनियेँ हेरा जाइ छैन। तहिना धन उपारजनमे सेहो किछु गोरे अपनाकेँ तेना झोंकि दइ छैथ जे या तँ भोगीए बनि जाइ छैथ जइसँ नीक-अधलाक विचारे मनसँ हेरा जाइ छैन वा जोगिये बनि जाइ छैथ जे जेतबे दिनमे खगता देखै छैथ ओतबे दिनमे उपारजनो करै छैथ। खाएर जेतए जे अछि मुदा जोगारी भायकेँ से नइ छेलैन। ओ बॉंसकेँ अपन उपयोगी वस्‍तु बुझैत किसानी जिनगीक नगदी पैदावार सेहो बुझै छैथ।
बॉंस रोपलाक तीन सालक पछाइत, जहिना बाबाक अमलदारी अबैत-अबैत मृत्‍युक संभावना मनुखमे आबए लगैए तहिना बॉंसोक तँ अछिए। माने, पुरान बॉंसकेँ बीटसँ निकालब अनिवार्य भाइये जाइए, नहि तँ मनुखे जकॉं भऽ जाएत। माने ई जे जँ पैछलो पीढ़ी बाबा-परबाबा आ तोहूसँ ऊपरका बाबा सभ जँ परिवारमे जीविते रहता तँ ऐगला पीढ़ीक बाढ़िमे बाधा उपस्‍थित भाइये जाइए। तहिना बॉंसोक अछिए। तीन-चारि पीढ़ीक पछाइत जँ बीटसँ पैछला बॉंस निकालल नहि जाएत तँ ऐगला बॉंस प्रभावित होइते अछि। मुदा जोगारी भायकेँ अछैते आमदनी रहितो आमदनीमे खलल पसि गेलैन। खलल ई पैसलैन जे अपन परिवारमे जेते उपयोगक खगता छेलैन ओकर अतिरिक्‍त जे बिकरी-बट्टाक उत्‍पादित वस्‍तु छेलैन, ओइमे कमी एलैन। जइसँ अछैते धनबल रहितो जोगारी भाय धनहीन हुअ लगला। वस्‍तुक हिसाबसँ गाममे लेबाल कमए लगल। जइसँ समुचित लाभमे कमी एलैन। तेकर कारण जे किछु लोककेँ गामसँ बहरेनौं आ बरेब-बाड़ीक काज कमने बॉंसक खगता कमए लगल। दोसर दिस नव-नव योजनाक अन्‍तर्गत सेहो आ किछु लोक अपनो कमा-खटा कऽ पजेबाक घर बनबए लगला तइसँ घर-घरहटमे सेहो बॉंसक काज कमने बॉंसक बिकरीमे मन्‍दी एबे कएल जइसँ जोगारी भाय सेहो प्रभावित भेबे केला।
चालीस बर्खक पछाइत जोगारी भाय दरबज्‍जापर बैस अपन किसानी जिनगीक समीक्षा कऽ रहला अछि। समीक्षा कए रहला अछि जे जिनगीक कोन लाभ बँचल अछि आ कोन हेरा गेल। तइमे सघन बँसवारिक की स्‍थिति अछि...। तही बीच पत्नी आबि बजली-
मन-तन गड़बड़ अछि जे मन्‍हुआएल देखै छी?”
अपन बेथाकेँ छिपबैत जोगारी भाय बजला-
मन्‍हुआएल नइ छी भकुआएल छी। चाह पीलाक पछाइत मन फरहर भऽ जाएत।
पतिक चाहक बात सुनिते फुलकुमारी बजली-
चाहे बना कऽ तँ हम देखए आएल छेलौं जे दरबज्‍जापर छी की नहि।
ओना जोगारी भाइक मनमे पत्नीक बात सुनि कनी-मनी कुवाथ भेबे केलैन। कुवाथ ई भेलैन जे जखन हुनका मनमे शंका भेलैन जे दरबज्‍जापर छैथ की नहि, तखन ओ अनठेकानी चाहे किए बनौली! जँ हम दरबज्‍जापर नइ रहितौं तखन ओ चाह पानियेँ बनैत किने! मुदा लगले मनमे उठलैन, एक तँ हथियारक काटल घाव तैपर जँ नून छीटब तँ ओ बुड़िबकी छोड़ि आरो की हएत। एक तँ ओहिना घावक टीस अछि तैपर जँ नूनक मिस कऽ दिऐ तखन तँ ओ आरो टहकत किने। तइसँ नीक जे पोल्‍हाइए कऽ किए ने अपन मनक बेथा पत्नीकेँ सुना दिऐन। अर्द्धांगिनी छैथ जँ अदहो दरद हेरि लेलैन तँ अदहे ने बँचत, अदहा तँ कमबे करत...। यएह सोचि जोगारी भाय बजला-
शुभ काजमे जेते देरी करब ओते ओ अशुभ भेल, तँए पहिने चाह पिआउ।
हलशल-कलशल पतिक विचार सुनि फुलकुमारी मुस्‍की दैत चाह आनए ऑंगन गेली।
दरबज्‍जापर सँ फुलकुमारीकेँ हटिते जोगारी भाइक मन फेर ओहिना बदरीहन हुअए लगलैन जेना सौन-भादोमे पुर्बाक लहकीपर मेघकेँ वादल पाबि होइए। मनमे पुन: उठि एलैन- अपन जिनगीक अमूल्‍य समए, श्रमशील समए ओहिना नष्‍ट भऽ जाएत..!
अपन श्रमकेँ नष्‍ट होइते देखते जोगारी भाइक मनक विचार आगू बढ़लैन। आगू बढ़िते मनमे उठलैन- की बॉंसक एतबे उपयोग अछि जे अपन कठिन श्रम कएल पूजी नष्‍ट भऽ जाए? जोगारी भाइक मन ठमकलैन। ठमैकते मन आगू घुसकए लगलैन। जेते काज अखन तक बॉंसक हम सभ करैत एलौं अछि, ओ छेहा किसानी जिनगीक उपयोग केलौं अछि। मुदा जखन जिनगी आगू बढ़त तखन मशीनक जरूरत सेहो हेबे करत। दुनियॉंक दृश्‍य आइ ओहन भऽ गेल अछि जे जेकरा जेते अगुआएल मशीन छै ओ ओते शक्‍ति सम्‍पन्न देश बनल अछि। बॉंसेक तँ अनेको उपयोगी वस्‍तु–कागज, कपड़ा इत्‍यादि–बनिते अछि जेकर उपयोग आइये नहि, आगुओ होइते रहत। मुदा बॉंसक उत्‍पादन तँ मात्र ओत्तैटा नहि हएत जेतए अनुकूल वातावरण छइ। माने बॉंस उपजैक समुचित भूमि आ समुचित मौसम जेतए छइ, कम-सँ-कम कपड़ा आ कागजक खगता तँ सभ जगह छइहे...। तही बीच फुलकुमारी चाह नेने दरबज्‍जापर आबि गेलखिन।
पत्नीक हाथमे चाहक गिलास देखते जोगारी भाइक मनमे विचारक चाह सेहो जगि चुकल छेलैन। ओना विचारक गंभीर वन–वनक सघन रूप–मे जोगारी भाइक मन तेना सघन हुअ लगल छेलैन जे पत्नीक हाथक चाहपर नजैर ओइ रूपे पड़बे ने केलैन जेहेन मन बनौने फुलकुमारी चाह नेने आएल छेली। मुदा तैयो पत्नीक हाथसँ चाह लैत जोगारी भाय ऑंखि-पर-ऑंखि जरूर फेड़लैन।
ऑंखि-पर-ऑंखि पड़िते फुलकुमारी बजली-
बड़ीकालक बनौल चाह छी, देखियौ जे सुआदमे ने ते बाइसपन आएल अछि।
पत्नीक बात सुनि जोगारी भाइक मुहसँ बहरेलैन-
बाइसपन आबह कि तेइसपन, चाह तँ चाह छी।
ओना, जोगारी भाइक विचार फुलकुमारी नीक जकाँ नहि बुझली मुदा अपन हाथक बनौल चाहक प्रशंसा तँ सुनबे केली। प्रशंसा सुनि फुलकुमारी ऑंगन दिस मुड़ैत बजली-
ताबे अहॉं चाह पीबू, लगले हम आँगनसँ अबै छी।
तैबीच दू घोंट चाह जोगारी भाय पीब नेने छला, मनमे संतुष्‍टिक तुष्‍टि पनैप गेले छेलैन तँए मुस्‍कुराइत बजला-
ऑंगनसँ ओहिना किए आएब, चाह पीने आएब।
ओना पतिक विचारसँ फुलकुमारीकेँ मिसियो भरि कुवाथ नइ भेलैन, किएक तँ जे बात झॉंपन दऽ बाजल छेली ओ पति उघारि देलकैन, तेतबे ने। से तँ सभ जनिते अछि जे पति-पत्नीक बीच हुअए वा आन छोट-पैघक बीच, मुदा किछु विचार तँ ओहन होइते अछि जे लोक झॉंपन-तोपन दऽ कऽ बजैए।
चाह पीब पान खाइते जोगारी भाइक मनमे धक्का जकॉं लगलैन। धक्का लगिते मन धड़कए लगलैन। धड़कए ई लगलैन जे आइये नहि, सभ दिन मिथिलांचलक अनमोल उपयोगी वस्‍तु बॉंस रहल, जे अनुकूल वातावरण पेब अदौसँ फुलाइत-फड़ैत रहल अछि। हजारो बीघाक कृषि पैदावार रहल अछि। जे ग्रामीण उपयोगिता कमिते बीटक बीट बॉंस सुखि-सुखि नष्‍ट भऽ रहल अछि। दुर्भाग्‍य तँ मिथिलांचलक रहबे कएल जे बुधिक शीर्षपर बसैबला मिथिलावासी अपनो नीक-बेजा बुझैले अखनो तैयार नहियेँ छैथ। आइ जँ गामक वस्‍तु सभ जे अनुपयोगी भेल जा रहल अछि, ओकर जँ समुचित उपयोग होइत तँ कि जएह मिथिला बुझै छी सहए रहैत..?
एन.एच. सतावन बनल। जइसँ सभ गाम तँ नहि मुदा मिथिलांचलक बहुतो गामक सम्‍पर्क सूत्र देशक आन-आन भागसँ बनल। गाड़ी-सवारीक सुविधा बढ़ल। पैघ-पैघ वेपारीक नजैर बॉंसपर पड़ल। लोकोकेँ माने बॉंस उपजौनिहारोकेँ गाड़ाक घेघ बॉंस बनिये गेल अछि। पड़ाएल चोरक किदैन नफा, एहने मनोभाव लोककेँ उदय भेल। मजबूरीक भरपूर लाभ उद्योगपतिकेँ उठबैक अवसर भेटल।
अपन जिनगीक संग जोगारी भाय समाजोक जिनगी देख रहला अछि। चालीस बर्ख पूर्वक रोपल सघन बँसवारि–माने नीक लाभक–देख जोगारी भाइक मन पाछू दिस भागि रहल छैन। साइयो बीघाक डुमैत समाजक सम्‍पैत देख जोगारी भाइक मनक विचार हहैर-हहैर अलिसाएल फूल जकॉं झड़ि-झड़ि खसि रहल छैन। मुदा उपाइये की? तही बीच लक्ष्‍मीनाथ एकटा वेपारीक संग पहुँचल। अनभुआर बेकतीकेँ देख जोगारी भाय लक्ष्‍मीनाथकेँ पुछलखिन-
हिनका नइ चिन्‍हलयैन?”
ओना वेपारी चुपे रहला मुदा लक्ष्‍मीनाथ बाजल-
काका, ई बॉंसक वेपारी छैथ। गाममे जेते बॉंस अछि, सभटा कीन लेता। 
गामक जेते बॉंस अछि, सभटा कीन लेता। सुनि जोगारी भाइक मनमे खुशीक लहैर उठलैन। मुदा लगले मनमे उठि गेलैन जे करोड़ोक सम्‍पैत बॉंस गाममे अछि, अखन तक जे बॉंसक विकरीक दर रहल अछि, ओइ दरे कीनता आकि..? मुदा अपन विचारकेँ मनेमे दाबि जोगारी भाय बजला-
ई तँ नीक बात भेल जे जे सम्‍पैत नष्‍ट भऽ रहल अछि ओकर उपयोग हएत।
अपन बात रखैत लक्ष्‍मीनाथ बजला-
काका, हिनकर कहब छैन जे सुखाएल आ खिच्‍चा बॉंस छोड़ि हरदर सभ एक रेटमे कीन लेब।
लक्ष्‍मीनाथक बात सुनि जोगारी भाइक मनमे उठलैन जे अनेको किस्‍मक बॉंस गाममे अछि, जे साइजो आ गुणेमे अनेक रंगक अछि, तखन एक दर केना हएत? विचारकेँ बहकबैत बजला-
टके सर भाजी, टके सेर खाजा।
मुस्‍कुराइत लक्ष्‍मीनाथ बाजल-
हँ, से सहए बुझू।
जोगारी भाय वेपारीकेँ पुछलखिन-
अहॉं केतए रहै छी?”
जहिना मैथिलीमे जोगारी भाय पुछलखिन तहिना मैथिलियेमे वेपारी सेहो उत्तर देलकैन-
हमर घर सकरी अछि। असल वेपारी दिल्‍लीक छैथ।
जोगारी भाय-
अहॉंकेँ पार्टनरशिप अछि आकि..?”
वेपारी बाजल-
नइ, पार्टनरशिप केना हएत। ओ–माने उद्योगपति–बहुत पैघ कारोबारी छैथ। हम एकटा अदना आदमी छी, तैबीच पार्टनरशिप केना हएत।
जोगारी भाय पुछलखिन-
तखन अहॉं?”
वेपारी बाजल-
ट्रकक हिसाबसँ कमीशन भेटैए।
जोगारी भाय-
गामक सभ बॉंस कीन लेब?”
वेपारी-
गामे किए, इलाकाक सभ कीना जाएत। हमरा सन-सन साइयो गोरे कमीशनपर काज कए रहला अछि।
जोगारी भाय-
की रेटमे बाँस कीनै छी?”
वेपारी- ओना, जे रोड साइड माने एन.एच.क बगलमे अछि ओकर दर अस्‍सी रूपैआ–एक बॉंसक–अछि। मुदा जे जेते हटि कऽ अछि, ओकर दर ओते कम होइत जाइए।
अपन गामक हिसाब अन्‍दाजि मने-मन जोगारी भाय जोड़लैन तँ बुझि पड़लैन जे जे बॉंस दू साए रूपैये बीकैए ओ सत्तैर-पचहत्तैर रूपैये भेल, अढ़ाइ-बड़ कम! मुदा दोसर उपाइयो तँ नहियेँ अछि। साले-साल सुखि-सुखि नष्‍ट होइत जाइए...।
जोगारी भाय बजला-
मिथिलांचलक संस्‍कार रहल अछि जे जे दरबज्‍जापर आबि जाथि हुनकर मन दुखा कऽ विदा नइ करिऐन। तहूमे अहॉं ने पड़ोसी छी मुदा असल जे कारोबारी छैथ ओ तँ हजार कोस दूरक छथिये। केना कऽ मन दुखेबैन। जेते बॉंस अछि ओइमे एकटा बीटक अपना-ले रखि लेब, बाँकी सभ दऽ देब।
वेपारीक संग लक्ष्‍मीनाथ सेहो उठि कऽ विदा भेल। जहिना अभावीकेँ करजो रूपैआ हाथमे एने क्षणिक खुशी होइते छै तहिना जोगारी भायकेँ सेहो भेलैन।
तही बीच फुलकुमारी दरबज्‍जापर पहुँचली। हड्डी चुसैत कुत्ता जहिना अपने मुँहक खूनक सुआदसँ मन तृप्‍ति करैत तिरपित होइए, तहिना जोगारी भायकेँ भेलैन। पत्नीकेँ कहलखिन-
गाड़ाक उतरी उतरल।
शब्‍द संख्‍या : 2523, तिथि : 29 जून 2017


[1] नमी
[2] गहराइ
[3] नमहर गाछक जड़िमे
[4] पाबनिक दिन 
[5] बॉंसक बीटमे 

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